विष्णुसहस्रनाम
श्री विष्णूसहस्रनाम म्हणजे भगवान श्री विष्णूच्या १,००० (एक हजार) नावांचे स्तोत्र होय. हे स्तोत्र पितामह भीष्म यांनी युधिष्ठिरला सांगितले असा उल्लेख महाभारतात येतो.[१] भीष्म पितामह अर्जुनाने पराभूत होऊन गंभीर जखमी झाले. परंतु त्याला मिळालेल्या वरदानानुसार मृत्यूची वेळ निवडता येत असल्याने त्याने उत्तरायणातच मरण निवडले आणि शुभ मुहूर्ताची वाट पाहत होता. दरम्यान युद्ध संपले आणि पंच पांडव आणि अभिमन्यूचे न जन्मलेले मूल वगळता त्याच्या कुटुंबातील सर्व पुरुष सदस्यांचा मृत्यू झाला. पांडवांतील ज्येष्ठ युधिष्ठ हा हस्तिनापुराचा राजा झाला आणि तो महान भीष्मांशिवाय कोणाचा सल्ला घेईल. अनुशासनिका पर्व हे युधिष्ठ्र आणि भीष्म पितामहा यांच्यातील प्रश्न आणि उत्तरांच्या स्वरूपात आहे. सर्वोत्तम संभाव्य स्तोत्र कोणते आहे या प्रश्नावर, भीष्म उत्तर देतात की ते विष्णू सहस्र नाम आहे आणि ते युधिष्ट्राला शिकवतात.
विष्णूसहस्त्रनाम | |
---|---|
विष्णू सहस्रनामाची पाण्डुलिपि, इ.स. १६९० | |
माहिती | |
धर्म | हिंदू धर्म |
लेखक | भीष्म |
भाषा | संस्कृत |
कालावधी | ई.पू. ३१३९, (महाभारत काळ) |
अध्याय | १ |
सूत्र | ब्रह्मसूत्र |
श्लोक/आयत | १०८ |
महत्त्व
संपादनवैष्णव संप्रदायाचे हे एक महत्त्वाचे स्तोत्र आहे.[२] या स्तोत्राच्या प्रास्ताविकात जो श्लोक आलेला आहे त्यात म्हणले आहे की महापुरुष श्री विष्णू देवतेची जी नावे ऋषींनी गायली आहेत ते मला ऐश्वर्य प्राप्ती व्हावी म्हणून मी कथन करीत आहे. महाभारतातील अनुशासन पर्वात हे स्तोत्र आले असून याचा नेहमी पाठ करणाऱ्याा व्यक्तीला धर्म, अर्थ आणि काम हे तीन पुरुषार्थ प्राप्त होतात असे सांगितले आहे. ( अनुशासन पर्व १३५.१२४ )[३]
स्तोत्रपाठ
संपादनश्री विष्णू पूजनात विष्णूला अभिषेक करताना हे स्तोत्र म्हणले जाते. सत्यनारायण पूजेच्या वेळी हे स्तोत्र म्हणून श्री बाळकृष्ण अथवा शाळीग्राम यांना अभिषेक केला जातो.[४] लक्ष्मीच्या प्राप्तीसाठी व्यापारी समाजात या स्तोत्राचे महत्त्व विशेष आहे.[५] जीवनातील विविध संकटांवर मात करण्यासाठी या स्तोत्राचे पठन करण्याची प्रथा आणि श्रद्धा दिसून येते.[६] यात भगवान श्रीविष्णूंची भूतात्मा, हिरण्यगर्भ, मनु, पूतात्मा अशी वैदिक नावे यात दिसतात. त्याच जोडीने रुद्र, शंभू अशी काही श्रीशंकराची नावेही यात दिसतात. शिव आणि श्रीविष्णू या देवतांचे ऐक्य दाखविण्यासाठी अशी नावे आलेली आहेत असेही याविषयी काही अभ्यासक नोंदविताना दिसतात.
भीष्म उवाच
जगत्प्रभुं देवदेवमनन्तं पुरुषोत्तमम् ।
स्तुवन्नामसहस्रेण पुरुषः सततोत्थितः ॥
तमेव चार्चयन्नित्यं भक्त्या पुरुषमव्ययम् ।
ध्यायन्स्तुवन्नमस्यंश्च यजमानस्तमेव च ॥
अनादिनिधनं विष्णुं सर्वलोकमहेश्वरम् ।
लोकनाथं महद्भूतं सर्वभूतभवोद्भवम् ॥ ७ ॥
एष मे सर्वधर्माणां धर्मोऽधिकतमो मतः ।
यद्भक्त्या पुण्डरीकाक्षं स्तवैरर्चेन्नरः सदा ॥
परमं यो महत्तेजः परमं यो महत्तपः।
परमं यो महद्ब्रह्म परमं यः परायणम् ॥
पवित्राणां पवित्रं यो मङ्गलानां च मङ्गलम्।
दैवतं देवतानां च भूतानां योऽव्ययः पिता ॥
यतः सर्वाणि भूतानि भवन्त्यादियुगागमे ।
यस्मिंश्च प्रलयं यान्ति पुनरेव युगक्षये ॥
तस्य लोकप्रधानस्य जगन्नाथस्य भूपते ।
विष्णोर्नामसहस्त्रं मे शृणु पापभयापहम् ॥
यानि नामानि गौणानि विख्यातानि महात्मनः ।
ऋषिभिः परिगीतानि तानि वक्ष्यामि भूतये ॥
श्री विष्णूसहस्त्रनाम स्तोत्रातील हजार नावे
संपादनअ. क्र. | नाम | मराठी अर्थ | |||
---|---|---|---|---|---|
१ | विश्वम् | सर्व विश्वाचे कारणरूप | |||
२ | विष्णूः | जो सर्वत्र व्याप्त आहे | |||
३ | वषट्कारः | ज्याचं उद्देशाने यज्ञात वशटक्रिया केली जाते , जो यज्ञस्वरूप आहे | |||
४ | भूतभव्यभवत्प्रभुः | भूत, वर्तमान आणि भविष्याचा स्वामी | |||
५ | भूतकृत् | सर्व सजीवांचा निर्माता | |||
६ | भूतभृत् | सर्व सजीवांचा पालनकर्ता | |||
७ | भावः | प्रपंच रूपाने उत्पन्न होणारा | |||
८ | भूतात्मा | सर्व जीवांचा आत्मा, सर्वांतरयामी | |||
९ | भूतभावनः | सर्व जीवांच्या जन्म आणि अभिवृद्धीस कारणीभूत | |||
१० | पूतात्मा | पवित्र आत्मा | |||
११ | परमात्मा | देवांचा देव, श्रेष्ठ नित्य शुद्ध बद्धमुक्त आत्मा, | |||
१२ | मुक्तानां परमा गतिः | मुक्त पुरुषाची परम गती, जीवन्मुक्त आत्म्यांंचे परम लक्ष्य | |||
१३ | अव्ययः | कधीही नाश न होणारा | |||
१४ | पुरुषः | शरीरात राहणारा, पूर्ण पुरुषत्व असलेला | |||
१५ | साक्षी | स्वता:च्या ज्ञानाने पाहणारा | |||
१६ | क्षेत्रज्ञः | शरीराला जाणणारा | |||
१७ | अक्षरः | ज्याचा नाश होऊ शकत नाही तो | |||
१८ | योगः | जो योग भावात वसलेला आहे, जो योगा द्वारे जाणता येऊ शकतो तो | |||
१९ | योगविदां नेता | योग्यांचा मार्गदर्शक/नेतृत्व करणारा | |||
२० | प्रधानपुरुषेश्वरः | मूळ प्रकृतीचा ज्ञाता ईश्वर | |||
२१ | नारसिंहवपुः | जो नृसिंहरुपी आणि मनुष्यरूपी देहधारी आहे असा ईश्वर | |||
२२ | श्रीमान् | लक्ष्मीयुक्त, हृदयावर लक्ष्मीला धारण करणारा | |||
२३ | केशवः | केशी राक्षसाचा संहारकर्ता, सुंदर कुरळे केस असलेला, | |||
२४ | पुरुषोत्तमः | क्षार व अक्षर या दोन्ही पैकी श्रेष्ठ, सर्व पुरुषांत उत्तम असलेला पूर्णपुरुष | |||
२५ | सर्वः | जो सर्वकाळी सर्वत्र आहे | |||
२६ | शर्वः | प्रलयकाळी रुद्ररूपाने सर्व संहारक | |||
२७ | शिवः | जो पूर्णपणे शुद्ध आहे, जो शिवस्वरूप आहे | |||
२८ | स्थाणुः | अचल, ठाम आणि स्थिर आहे | |||
२९ | भूतादिः | प्राणिमात्रांचे आदीकारण जो पंचमहाभूतात आहे | |||
३० | निधिरव्ययः | प्रलयकाळी सर्व प्राणिमात्र ज्यात विलीन होतात | |||
३१ | सम्भवः | स्वेच्छेने पुन्हा पुन्हा जन्मणारा | |||
३२ | भावनः | आपल्या भक्तांना सर्वकाही देणारा | |||
३३ | भर्ता | सर्व जग नियंता | |||
३४ | प्रभवः | दिव्या जन्म धारण करणारा, पंचमहाभूताचे मूळ | |||
३५ | प्रभुः | सर्वशक्तिमान परमेश्वर | |||
३६ | ईश्वरः | उपाधिरहित ऐश्वर्य असलेला, जो सर्वकाही करू शकतो | |||
३७ | स्वयम्भूः | स्वतःचा स्वतः निर्माता असणारा | |||
३८ | शम्भुः | शुभ कर्ता | |||
३९ | आदित्यः | बारा आदित्य पैकी विष्णूचे नाव नाव असलेला आदित्य, सूर्य/सूर्या सम | |||
४० | पुष्कराक्षः | कमल नयन | |||
४१ | महास्वनः | वेदरूप गर्जना कर्ता आवाज असणारा | |||
४२ | अनादि-निधनः | ज्याचाना जन्म झालाना अंत होणार आहे | |||
४३ | धाता | विश्वाचे धारण करणारा | |||
४४ | विधाता | कर्म व कर्मफलाचा निर्माता, सुष्टीकर्ता | |||
४५ | धातुरुत्तमः | सर्व प्रपंच धारण करणारा सर्वश्रेष्ठ, (परमाणू, पदार्थाचे सूक्ष्मस्वरूप) | |||
४६ | अप्रमेयः | ज्याचे मोजमाप होऊ शकत नाही असा तो | |||
४७ | हृषीकेशः | इंद्रियांचा स्वामी, इंद्रियांवर विजय मिळवलेला | |||
४८ | पद्मनाभः | ज्याच्या नाभीतून कमळ उगवले आहे तो | |||
४९ | अमरप्रभुः | देवांचाही देव | |||
५० | विश्वकर्मा | सृष्टीचा निर्माता | |||
५१ | मनुः | महर्षी मनू, वेदमंत्र स्वरूप | |||
५२ | त्वष्टा | संहारकाळी प्राण्यांना क्षीण करणारा | |||
५३ | स्थविष्ठः | स्थूलरूपी | |||
५४ | स्थविरो ध्रुवः | अत्यंत प्राचीन, स्थिर | |||
५५ | अग्राह्यः | इंद्रियातीत, सहज न कळणारा | |||
५६ | शाश्वतः | ज्याचे अस्तित्त्व कायम आहे | |||
५७ | कृष्णः | सावळा, सच्चिदानंद, | |||
५८ | लोहिताक्षः | लाल डोळ्यांचा | |||
५९ | प्रतर्दनः | विनाशकर्ता | |||
६० | प्रभूतः | सार्वभौम, पूर्णस्वरूप | |||
६१ | त्रिकाकुब्धाम | वर, खाली व मध्ये अशा तिन्ही दिशांचे आश्रयस्थान | |||
६२ | पवित्रम् | हृदयाला (चित्त) शुद्ध करणारा | |||
६३ | मंगलं-परम् | अशुभ नष्ट करून शुभ देणारा, अत्यंत शुभ | |||
६४ | ईशानः | पंचमहाभूताचा स्वामी, | |||
६५ | प्राणदः | प्राणदान देणारा (प्राणाचे रक्षण करणारा) | |||
६६ | प्राणः | जीवनशक्ती | |||
६७ | ज्येष्ठः | सर्वात प्रथम/सर्वात मोठा | |||
६८ | श्रेष्ठः | सर्वोत्तम, दिव्य-भव्य | |||
६९ | प्रजापतिः | सर्व जीवजंतूचा स्वामी | |||
७० | हिरण्यगर्भः | ब्रह्मदेवाचा आत्मा, सर्व ब्रह्मांडांंचा केंद्रबिंदू | |||
७१ | भूगर्भः | पृथ्वीला धारण करणारा | |||
७२ | माधवः | लक्ष्मीपती | |||
७३ | मधुसूदनः | मधू-कैटभ राक्षसांंचा नाश करणारा | |||
७४ | ईश्वरः | देवता | |||
७५ | विक्रमी | शूर-वीर, सर्व विक्रमांचा स्वामी | |||
७६ | धन्वी | दैवी धनुष्यधारी, शारंगधनुष्य धारी | |||
७७ | मेधावी | मेधा म्हणजे धारणशक्तीचा स्वामी | |||
७८ | विक्रमः | गरुडावर बसून सर्वत्र फिरणारा | |||
७९ | क्रमः | चालना देणारा | |||
८० | अनुत्तमः | सर्वश्रेष्ठ | |||
८१ | दुराधर्षः | ज्याच्यावर हल्ला/आक्रमण होऊ शकत नाही असा तो, अजिंक्य | |||
८२ | कृतज्ञः | सर्व कर्मांचा कर्ता, सर्व प्राण्यांची कर्मे जाणणारा | |||
८३ | कृतिः | कृतीचा आधार | |||
८४ | आत्मवान् | आपल्याच महिम्यात राहणारा, सर्व जगतात अंतर्भूत असलेला | |||
८५ | सुरेशः | देवांचा स्वामी | |||
८६ | शरणम् | आश्रयदाता | |||
८७ | शर्म | परमानंद स्वरूप | |||
८८ | विश्वरेताः | अनंत ब्रह्मांंडाचं बिज | |||
८९ | प्रजाभवः | सकल मनुष्यजनांचा निर्माता | |||
९० | अहः | प्रकाशरूप, काळ स्वरूप | |||
९१ | संवत्सरः | काळरूप | |||
९२ | व्यालः | सर्परूप (चपळ) | |||
९३ | प्रत्ययः | ज्याच्या अस्तित्त्वाचा प्रत्यय येतो | |||
९४ | सर्वदर्शनः | जो सर्वकाही पहातो | |||
९५ | अजः | अजन्मा | |||
९६ | सर्वेश्वरः | सर्वांचा नियंता | |||
९७ | सिद्धः | जो स्वयंसिद्ध आहे | |||
९८ | सिद्धिः | जो सर्व दाता आहे | |||
९९ | सर्वादिः | जगताच्या पूर्वीपासूनचा | |||
१०० | अच्युतः | ज्याचे पतन होऊ शकत नाही, (जो भक्तांचे पतन होऊ देत नाही) | |||
१०१ | वृषाकपिः | धर्म व वराह रूप | |||
१०२ | अमेयात्मा | ज्याचे मोजमाप होऊ शकत नाही. | |||
१०३ | सर्वयोगविनिसृतः | जो विविध योग मार्गाने जाणला जाऊ शकतो. | |||
१०४ | वसुः | जो सर्व भूतांच्या (सजीव-प्राणिमात्रांच्या) ठायी वसतो | |||
१०५ | वसुमनाः | ज्याचे ठाई ऐश्वर्य, संपत्ती आहे. ज्याच्या मनाला कोणतेही विकार स्पर्श करू शकत नाहीत. | |||
१०६ | सत्यः | अंतिम सत्य. सज्जनांचा हितकारक. | |||
१०७ | समात्मा | जो भेदभाव न करता सर्वांशी एक समान वागतो. सर्वांच्या अंतरंगात एक समान वसलेला. | |||
१०८ | सम्मितः | सर्वमान्य. जो सर्व योग्य पदार्थांनी जाणला जाऊ शकतो. | |||
१०९ | समः | जो सर्व काळी, सर्व स्थळी, सर्वत्र एकसम असलेला. | |||
११० | अमोघः | ज्याचे स्तवन, पूजन उपयुक्त आहे असा तो. ज्याचे संकल्प सत्यात उतरतात. | |||
१११ | पुण्डरीकाक्षः | कमलनयन असलेला. हृदयरूपी कमळात वसणारा. | |||
११२ | वृषकर्मा | ज्याची सर्व कर्मे धर्मानुसार असतात असा तो. | |||
११३ | वृषाकृतिः | धर्मासाठी अवतार धारण करणारा. | |||
११४ | रुद्रः | शिवस्वरूप. रौद्ररूप. अंतिम काळी पापासंबंधी पश्चाताप करायला लावणारा. | |||
११५ | बहुशिरः | अनेक मस्तके असणारा. | |||
११६ | बभ्रुः | जगाचे पालन-पोषण करणारा. | |||
११७ | विश्वयोनिः | ब्रह्मांंडाचा गर्भ. ज्याच्या उदरातून ब्रह्मांडाची उत्पत्ती झाली. | |||
११८ | शुचिश्रवाः | जो सर्वकाही चांगलं ऐकतो, जाणतो. ज्याचे श्रवण करणे पवित्र मानले जाते. | |||
११९ | अमृतः | अमर. अमृतस्वरूप. | |||
१२० | शाश्वतः-स्थाणुः | जो शाश्वत आणि स्थिर आहे. | |||
१२१ | वरारोहः | ज्याच्या मांड्या श्रेष्ठ आहेत | |||
१२२ | महातपः | ज्याचे सृष्टविषयीचे ज्ञान श्रेष्ठ आहे. ज्याचे तप, ऐश्वर्यादी ज्ञान श्रेष्ठ आहे | |||
१२३ | सर्वगः | सर्वव्यापी | |||
१२४ | सर्वविद्भानुः | सर्वज्ञानी, तेजोमय | |||
१२५ | विष्वक्सेनः | ज्याच्या विरुद्ध कोणीही टिकू शकत नाही. | |||
१२६ | जनार्दनः | भक्त ज्याची आराधना करतात. जो भक्तांना आनंदादी सुख देतो. | |||
१२७ | वेदः | वेदस्वरूप | |||
१२८ | वेदविद् | वेद जाणणारा | |||
१२९ | अव्यंगः | परिपूर्ण | |||
१३० | वेदांगः | वेद ज्याचे अंग आहेत | |||
१३१ | वेदवित् | वेदांचा विचार करणारा | |||
१३२ | कविः | सर्वकाही जाणणारा | |||
१३३ | लोकाध्यक्षः | सर्व लोकांचा प्रमुख. | |||
१३४ | सुराध्यक्षः | सर्व देवांचा प्रमुख | |||
१३५ | धर्माध्यक्षः | सर्व धर्मांचा प्रमुख | |||
१३६ | कृताकृतः | कार्यकारणरूप | |||
१३७ | चतुरात्मा | चार प्रमुख शक्तींचे स्वरूप | |||
१३८ | चतुर्व्यूहः | चार प्रकारचे रूप (वासुदेव, प्रद्युम्न, अनिरुद्ध आणि संकर्षण)असणारा | |||
१३९ | चतुर्दंष्ट्रः | नृसिंहासारख्या चार सुळ्या असणारा. | |||
१४० | चतुर्भुजः | चार हात (लक्ष्मीसह) असणारा | |||
१४१ | भ्राजिष्णुः | तेजस्वी | |||
१४२ | भोजनम् | He who is the sense-objects | |||
१४३ | भोक्ता | उपभोग घेणारा | |||
१४४ | सहिष्णुः | सहिष्णुता असणारा | |||
१४५ | जगदादिजः | ब्रह्मांडाच्या निर्मिती पूर्वीपासूनचा | |||
१४६ | अनघः | दोष-पाप रहित | |||
१४७ | विजयः | नित्य विजेता | |||
१४८ | जेता | सर्वकाही जिंकणारा | |||
१४९ | विश्वयोनिः | विश्वाचे उत्पत्तीस्थान | |||
१५० | पुनर्वसुः | पुन्हा पुन्हा नित्य स्थापन होणारा | |||
१५१ | उपेन्द्रः | इंद्रापेक्षा श्रेष्ठ | |||
१५२ | वामनः | वामन अवतारी | |||
१५३ | प्रांशुः | महाकाय | |||
१५४ | अमोघः | श्रेष्ठ कृत्य करणारा | |||
१५५ | शुचिः | अत्यंत शुद्ध आणि पवित्र | |||
१५६ | ऊर्जितः | नित्य बल आणि ऐश्वर्य युक्त | |||
१५७ | अतीन्द्रः | इंद्राच्याही पुढे | |||
१५८ | संग्रहः | प्रलयकाळी सर्वकाही शुभ ज्याच्यात समावतो तो | |||
१५९ | सर्गः | जगाच्या उत्पत्तीस कारणीभूत | |||
१६० | धृतात्मा | विकाराच्या आधीन न होता आपले मूळरूप कायम ठेवणारा | |||
१६१ | नियमः | सर्व ब्रह्मांडाचे, शास्त्राचे उचित नियम ज्याच्यात आहेत तो | |||
१६२ | यमः | प्रलयकाळी सर्वकाही नष्ट करणारा | |||
१६३ | वेद्यः | जाणून घेण्यास योग्य | |||
१६४ | वैद्यः | चिकित्सक | |||
१६५ | सदायोगी | योगी पुरुष | |||
१६६ | वीरहा | महा-वीर | |||
१६७ | माधवः | लक्ष्मी-पती | |||
१६८ | मधुः | मधासारखा उत्तम गोड | |||
१६९ | अतीन्द्रियः | इंद्रियातीत | |||
१७० | महामायः | माया त्याच्यापुढे क्षुल्लक आहे | |||
१७१ | महोत्साहः | उत्स्फूर्त, ज्याच्या प्राप्तीने उत्साह वाढतो | |||
१७२ | महाबलः | ज्याच्यापेक्षा बलवान कुणीही नाही | |||
१७३ | महाबुद्धिः | परमज्ञानी | |||
१७४ | महावीर्यः | महा पराक्रमी | |||
१७५ | महाशक्तिः | अति बलवान | |||
१७६ | महाद्युतिः | अति तेजस्वी | |||
१७७ | अनिर्देश्यवपुः | ज्याचे निश्चित वर्णन करणे अवघड आहे | |||
१७८ | श्रीमान् | ऐश्वर्ययुक्त | |||
१७९ | अमेयात्मा | ज्याचे मोजमाप करता येत नाही | |||
१८० | महाद्रिधृक् | मोठमोठे पर्वत सहज धारण करणारा | |||
१८१ | महेष्वासः | अजस्र शारङ्ग धनुर्धारी | |||
१८२ | महीभर्ता | धरणी/भूमातेचा पती | |||
१८३ | श्रीनिवासः | जेथे शरीलक्ष्मीचा नित्य वास असतो | |||
१८४ | सतां गतिः | सज्जनांचा मार्गदर्शक, सत्पुरुषांचे अंतिम ध्येय | |||
१८५ | अनिरुद्धः | ज्याला कुणीही रोखू शकत नाही | |||
१८६ | सुरानन्दः | देव/सज्जनांना आनंद देणारा | |||
१८७ | गोविन्दः | गोपालक, गोरक्षक किंवा पृथ्वीचा स्वामी | |||
१८८ | गोविदां-पतिः | महाज्ञानी पुरुषांचा स्वामी | |||
१८९ | मरीचिः | सूर्य/तेज/प्रकाश स्वरूप | |||
१९० | दमनः | विनाशक/अवगुणांचं दमन करणारा | |||
१९१ | हंसः | राजहंस | |||
१९२ | सुपर्णः | सुंदर पंख युक्त किंवा गरुड स्वरूप | |||
१९३ | भुजगोत्तमः | सापातील उत्तम असा तो | |||
१९४ | हिरण्यनाभः | ब्रह्मांंड | |||
१९५ | सुतपाः | सर्वोत्तम प्रकारचे तप | |||
१९६ | पद्मनाभः | नाभीत कमल असलेला | |||
१९७ | प्रजापतिः | सजीवांचा स्वामी | |||
१९८ | अमृत्युः | ज्याचा मृत्यू होत नाही | |||
१९९ | सर्वदृक् | सर्व काही पहाणारा | |||
२०० | सिंहः | सिंह (सिंहाप्रमाणे पराक्रमी) | |||
२०१ | सन्धाता | व्यक्ती आणि कर्मफळ यांची सांगड घालून देणारा | |||
२०२ | सन्धिमान् | परिस्थितीची जाणीव असणारा | |||
२०३ | स्थिरः | स्थिर, (काया, वाचा, मने) | |||
२०४ | अजः | सज्जनांना स्वतः होऊन जवळ करणारा, ब्रह्मा | |||
२०५ | दुर्मषणः | जो कधी पराभूत होऊ शकत नाही. ज्याचे तेज, शक्ती बल इत्यादी सामान्य माणसाला आणि दुर्जनांना सहन होऊ शकत नाही | |||
२०६ | शास्ता | ज्याचे अनंत ब्रह्मांडावर शासन चालते | |||
२०७ | विश्रुतात्मा | ज्याचे वर्णन पुन्हा पुन्हा श्रवण करावेसे वाटणारा. | |||
२०८ | सुरारिहा | देवतांच्या शत्रूंचा नाश करणारा | |||
२०९ | गुरूः | परमश्रेष्ठ | |||
२१० | गुरूतमः | गुरूंचा गुरू | |||
२११ | धाम | सर्व इच्छांचे आणि हेतूंचा आश्रयस्थान | |||
२१२ | सत्यः | शाश्वत सत्य. | |||
२१३ | सत्यपराक्रमः | ज्याचा पराक्रम कधीही व्यर्थ जात नाही. | |||
२१४ | निमिषः | ज्याचे डोळे ध्यानात अर्धवट मिटलेले (अर्धोंन्मीलित) आहेत. | |||
२१५ | अनिमिषः | नेहमी जागरूक असणारा | |||
२१६ | स्रग्वी | वैजयंतीमाला धारण केलेला | |||
२१७ | वाचस्पतिः-उदारधीः | बुद्धीचा स्वामी. | |||
२१८ | अग्रणीः | भक्तांचे योग्य नेतृत्व करणारा | |||
२१९ | ग्रामणीः | प्रमुख नेतृत्व | |||
२२० | श्रीमान् | तेज-ऐश्वर्य इत्यादींनी युक्त | |||
२२१ | न्यायः | न्यायस्वरूप | |||
२२२ | नेता | भक्तांना दिशा दाखवणारा, नेतृत्व करणारा | |||
२२३ | समीरणः | सर्वांना प्रेरणा देणारा. वायु रूपाने भक्तांत वावरणारा. | |||
२२४ | सहस्रमूर्धा | हजारो डोकी असणारा | |||
२२५ | विश्वात्मा | ब्रम्हांडाचा आत्मा | |||
२२६ | सहस्राक्षः | हजारो डोळे असणारा | |||
२२७ | सहस्रपात् | हजारो पावले असणारा | |||
२२८ | आवर्तनः | चारी युगांचे क्रमशः आवर्तन करून घेणारा | |||
२२९ | निवृत्तात्मा | बंधन-मुक्त | |||
२३० | संवृतः | मायेचे आवरण असलेला | |||
२३० | संप्रमर्दनः | सर्वांचे मर्दन करणारा | |||
२३२ | अहः संवर्तकः | (सूर्यरूपाने) सर्वांना दिवसाची प्रेरणा, बळ देणारा | |||
२३३ | वह्निः | अग्नी | |||
२३४ | अनिलः | वारा | |||
२३५ | धरणीधरः | पृथ्वीला धारण करणारा | |||
२३६ | सुप्रसादः | उत्तम प्रसाद (कर्मफळ) देणारा | |||
२३७ | प्रसन्नात्मा | नित्य प्रसन्न असणारा | |||
२३८ | विश्वधृक् | विश्वाचे धारण करणारा | |||
२३९ | विश्वभुक् | विश्वाचे पालन करणारा | |||
२४० | विभुः | अनेक रूपे धारण केलेला | |||
२४१ | सत्कर्ता | सत्कर्म करणारा. सज्जनांच्या कडून सत्कर्म करून घेणारा | |||
२४२ | सत्कृतः | सदैव पूजनीय. सज्जन ज्याचे पूजन नियमित पूजन करतात | |||
२४३ | साधुः | उत्तम, साधू वृत्तीचा | |||
२४४ | जह्नुः | दुर्जनांना दूर सारून सज्जनांना उत्तम पदास नेणारा | |||
२४५ | नारायणः | जल ज्याचे निवासस्थान आहे. प्रलयकाळी सर्वांना सामावून घेणारा | |||
२४६ | नरः | उत्तम पुरुषाचा अवतार धारण करणारा | |||
२४७ | असंख्येयः | ज्याला जाणून घेण्यासाठी संख्याबळसुद्धा अपुरे आहे | |||
२४८ | अप्रमेयात्मा | ज्याला जाणून घेण्यासाठी सर्व प्रमेयसुद्धा अपुरे आहे | |||
२४९ | विशिष्टः | विशेष स्थान, महती असणारा | |||
२५० | शिष्टकृत् | शासन (नियम) निर्माता. | |||
२५१ | शुचिः | शुद्धरूप | |||
२५२ | सिद्धार्थः | जो सर्वार्थाने पूर्णसिद्ध आहे | |||
२५३ | सिद्धसंकल्पः | योग्य (उच्च-श्रेष्ठ) संकल्प असणारा | |||
२५४ | सिद्धिदः | सर्वकाही उत्तर असे देणारा | |||
२५५ | सिद्धिसाधनः | सर्व सिद्धीचे साधन असलेला | |||
२५६ | वृषाही | सर्वकृतींंचे नियमन करणारा | |||
२५७ | वृषभः | आपल्या भक्तांवर उत्तम गोष्टींचा वर्षाव करणारा | |||
२५८ | विष्णूः | सर्वव्यापी | |||
२५९ | वृषपर्वा | आपल्या भक्तांना उच्च पदावर नेण्यासाठी शिडीसारखे साहाय्य करणारा. | |||
२६० | वृषोदरः | गर्भस्थानी धर्म धारण करणारा | |||
२६१ | वर्धनः | वाढणारा, वाढविणारा | |||
२६२ | वर्धमानः | कोणत्याही दिशेने वर्धिष्णु होणारा | |||
२६३ | विविक्तः | विभक्त | |||
२६४ | श्रुतिसागरः | ज्ञानाचा सागर | |||
२६५ | सुभुजः | सुंदर भुजा असणारा | |||
२६६ | दुर्धरः | ज्याला प्राप्त करणे/जाणून घेणे केवळ अशक्य आहे असा तो | |||
२६७ | वाग्मी | योग्य आणि उत्तम बोलणारा | |||
२६८ | महेन्द्रः | जो इंद्राचाही देव आहे | |||
२६९ | वसुदः | सर्व प्रकारचे धन देणारा | |||
२७० | वसुः | उत्तम संपत्ती (ऐश्वर्य युक्त) | |||
२७१ | नैकरूपः | ज्याची अनंत रूपे आहेत असा तो | |||
२७२ | बृहद्रूपः | प्रचंड आणि विशालकाय रूप असलेला | |||
२७३ | शिपिविष्टः | शिपी म्हणजे किरण; थोडक्यात तेजस्वी किरणांनी युक्त असा तो | |||
२७४ | प्रकाशनः | तेजस्वी प्रकाशमान. सर्वांना प्रकाश देणारा | |||
२७५ | ओजस्तेजोद्युतिधरः | ओज, तेज आणि द्युती यांना धारण करणारा | |||
२७६ | प्रकाशात्मा | स्वयम तेजस्वी | |||
२७७ | प्रतापनः | तापदायक (सूर्यासारखा तप्त) | |||
२७८ | ऋद्धः | समृद्ध असलेला | |||
२७९ | स्पष्टाक्षरः | ओंकार रूपाने युक्त असलेला | |||
२८० | मन्त्रः | जो स्वतः एक मंत्र आहे. (किंवा मंत्र आणि विष्णू हे अभिन्न आहेत.) | |||
२८१ | चन्द्रांशुः | चांद्रकिरणांसारखा शीतल, आल्हाददायक आणि औषधीयुक्त | |||
२८२ | भास्करद्युतिः | सूर्याप्रमाणे अत्यंत तेजस्वी | |||
२८३ | अमृतांशोद्भवः | अमृतरुपी प्रकाश असलेला चंद्र ज्याच्या पासून निर्माण झाला असा तो | |||
२८४ | भानुः | सूर्याप्रमाणे तेजस्वी प्रकाश देणारा | |||
२८५ | शशबिन्दुः | चंद्रावर असलेला डाग म्हणजे ससा असे मानून, असा तो चंद्रासारखा | |||
२८६ | सुरेश्वरः | देवांचाही देव | |||
२८७ | औषधम् | जो औषधी सम आहे, किंवा औषधांनी युक्त आहे असा तो. | |||
२८८ | जगतः सेतुः | संसाररूपी सागर ओलांडण्यासाठी लागणारा सेतू. किंवा संपूर्ण जग ज्याने एकत्र बांधून ठेवले आहे असा तो | |||
२८९ | सत्यधर्मपराक्रमः | सत्य, धर्म आणि पराक्रम ज्याच्यात सामावले आहेत असा तो | |||
२९० | भूतभव्यभवन्नाथः | भूतकाळ, वर्तमानकाळ आणि भविष्यकाळाचा स्वामी | |||
२९१ | पवनः | वायुरूपाने जगात सर्वत्र वावरणारा असा तो | |||
२९२ | पावनः | गती देणारा. शुद्ध करणारा | |||
२९३ | अनलः | अग्निरूप असलेला | |||
२९४ | कामहा | सर्व काम (इच्छांंचे) दमण करणारा | |||
२९५ | कामकृत् | सर्व इच्छांची पूर्तता करणारा | |||
२९६ | कान्तः | तेजस्वी कांती असलेला | |||
२९७ | कामः | सज्जनांनी ज्याची कामना करावी असा तो | |||
२९८ | कामप्रदः | इच्छित गोष्टींची पूर्तता करणारा | |||
२९९ | प्रभुः | परमेश्वर | |||
३०० | युगादिकृत् | युगकर्ता | |||
३०१ | युगावर्तः | The law behind time | |||
३०२ | नैकमायः | ज्याची रूपे अनंत आहेत असा | |||
३०३ | महाशनः | जो सर्व गिळंकृत करतो असा | |||
३०४ | अदृश्यः | अदृश्य( डोळ्यांना सहज न दिसणारा) | |||
३०५ | व्यक्तरूपः | योग्यांना दिसू शकेल असा | |||
३०६ | सहस्रजित् | ज्याने हजारोंना जिंकले आहे असा | |||
३०७ | अनन्तजित् | सदैव जिंकणारा | |||
३०८ | इष्टः | वैदिक यज्ञापासून उत्पन्न झालेला | |||
३०९ | विशिष्टः | एकमेवाद्वितीय | |||
३१० | शिष्टेष्टः | अतिशय आपलासा वाटणारा | |||
३११ | शिखंडी | श्रीकृष्णाच्या रूपात त्याच्या शिरपेचात असलेल्या मोरपिसांनी अवतरलेला | |||
३१२ | नहुषः | सर्व प्राणिमात्रांना आपल्या मायेने बांधणारा | |||
३१३ | वृषः | धर्मरूप असणारा | |||
३१४ | क्रोधहा | ज्याने राग नाहीसा केला आहे असा | |||
३१५ | क्रोधकृत्कर्ता | क्रोधी माणसाचा नाश करणारा. क्रोधाचा नाश करणारा किंवा योग्यवेळी क्रोध करणारा | |||
३१६ | विश्वबाहुः | आपल्या हातांनी विश्व व्यापणारा | |||
३१७ | महीधरः | पृथ्वीला धारण केलेला | |||
३१८ | अच्युतः | कधीही न ढळणारा | |||
३१९ | प्रथितः | जो सर्वांना माहीत आहे. जो सर्वत्र प्रसिद्ध आहे | |||
३२० | प्राणः | सर्व प्राणिमात्रांचा प्राण असलेला | |||
३२१ | प्राणदः | प्राण ( जीवन) देणारा | |||
३२२ | वासवानुजः | इंद्रबंधु | |||
३२३ | अपां-निधिः | जलाची समृद्धी असलेला | |||
३२४ | अधिष्ठानम् | सर्वांच्या मुळाशी ज्याचे स्थान आहे | |||
३२५ | अप्रमत्तः | कधीही आणि कुणावरही अन्याय न करणारा | |||
३२६ | प्रतिष्ठितः | स्वस्थानी पूर्णपणे स्थिर असलेला | |||
३२७ | स्कन्दः | कार्तिकस्वामी. अमृतरूपाने वाहणारा | |||
३२८ | स्कन्दधरः | धर्ममार्गाचे धारण करणारा | |||
३२९ | धूर्यः | संपूर्ण सजीवसृष्टीची धुरा वाहणारा | |||
३३० | वरदः | उत्तम वरदान देणारा | |||
३३१ | वायुवाहनः | सात विशिष्ट क्षेत्रात सात प्रकारचे वायू वाहतात; त्या वायूंचे वहन करणारा | |||
३३२ | वासुदेवः | वसुदेवपुत्र. स्वशक्तीने सर्व जीवांचे वसन करणारा | |||
३३३ | बृहद्भानुः | अफाट तेज असलेला. भानू म्हणजे सूर्य,जो सूर्यमालेत सर्वात बलवान आहे; त्या सूर्यापेक्षाही बलवान असलेला | |||
३३४ | आदिदेवः | मूळ परमेश्वर. सृष्टीच्या पूर्वीपासूनचा मुख्य परमेश्वर | |||
३३५ | पुरन्दरः | शत्रूंची महानगरे नष्ट करणारा. मनबुद्धितील दोष त्याप्रमाणे नष्ट करणारा | |||
३३६ | अशोकः | ज्याला कोणत्याही प्रकारचा शोक-दुःख नाही असा तो | |||
३३७ | तारणः | संसार सागरातून तारून नेणारा | |||
३३८ | तारः | सर्वप्राणिमात्रांचा तारक | |||
३३९ | शूरः | महापराक्रमी. शूर नावाचा जो पराक्रमी श्रीकृष्णाचा पूर्वज राजा होता, त्याचेच रूप | |||
३४० | शौरिः | महापराक्रमी शूर नावाचा राजाचा वंशज | |||
३४१ | जनेश्वरः | समस्त जीवांचा ईश्वर | |||
३४२ | अनुकूलः | सर्वांसाठी योग्य असलेला | |||
३४३ | शतावर्तः | शेकडो (अनंत) अवतार धारण करणारा | |||
३४४ | पद्मी | कमळ धारण करणारा | |||
३४५ | पद्मनिभेक्षणः | कमळासारखे डोळे असलेला | |||
३४६ | पद्मनाभः | ज्याच्या नाभीतून कमळ उमलले असा तो | |||
३४७ | अरविन्दाक्षः | कमळाप्रमाणे डोळे असलेला | |||
३४८ | पद्मगर्भः | कमळरुपी हृदयात ध्यान करण्यायोग्य | |||
३४९ | शरीरभृत् | विविध शरीर धारण करणारा/ज्याचा सर्वांच्या शरीरात निवास आहे असा तो | |||
३५० | महर्द्धिः | महाविभूती असलेला | |||
३५१ | ऋद्धः | ज्याने स्वतःला ब्रह्मांडा प्रमाणे विस्तारित केले असा तो | |||
३५२ | वृद्धात्मा | अति प्राचीन | |||
३५३ | महाक्षः | विशाल नेत्र असलेला | |||
३५४ | गरुडध्वजः | गरुड चिन्हांकित ध्वज असलेला | |||
३५५ | अतुलः | अतुल म्हणजे ज्याची तुलना होऊ शकत नाही असा | |||
३५६ | शरभः | सर्वांच्या शरीरात विराजमान असलेला असा तो | |||
३५७ | भीमः | महा बलढ्या | |||
३५८ | समयज्ञः | सर्वांना समभावाने जाणणारा/उत्पत्ती स्थिती आणि लय यांना जाणणारा | |||
३५९ | हविर्हरिः | यज्ञातील हविर्द्रव्य ग्रहण करणारा | |||
३६० | सर्वलक्षणलक्षण्यः | सर्व प्रकारचे उत्तम लक्षण धारण केलेला | |||
३६१ | लक्ष्मीवान् | लक्ष्मीयुक्त असा तो | |||
३६२ | समितिञ्जयः | युद्धात नेहमी विजय प्राप्त करणारा | |||
३६३ | विक्षरः | ज्याचा नाश होऊ शकत नाही असा तो | |||
३६४ | रोहितः | ज्याने मत्स्य अवतार धारण केला होता असा तो | |||
३६५ | मार्गः | सत्याचा मार्ग असलेला | |||
३६६ | हेतुः | जीवनाचा अंतिम हेतू | |||
३६७ | दामोदरः | ज्याच्या पोटाला एक विशिष्ट दोर आहे असा तो | |||
३६८ | सहः | सर्वकाही सहन करणारा | |||
३६९ | महीधरः | पृथ्वी धारण करणारा | |||
३७० | महाभागः | यज्ञातील सर्वात मोठा भाग घेणारा | |||
३७१ | वेगवान् | अतिशय वेग असलेला | |||
३७२ | अमिताशनः | सर्व काही पचवणारा | |||
३७३ | उद्भवः | जगाच्या उत्पत्तीचे मूळ | |||
३७४ | क्षोभणः | क्षोभ/आंदोलन करणारा | |||
३७५ | देवः | परमेश्वर | |||
३७६ | श्रीगर्भः | ज्याच्या गर्भात श्री म्हणजे वैभव आहे असा तो | |||
३७७ | परमेश्वरः | देवांचा ही देव | ३७८ | करणम् | संसाराच्या उत्पत्तीचे साधन |
३७९ | कारणम् | संसाराच्या उत्पत्तीचे कारण | |||
३८० | कर्ता | सर्व काही निर्माण करणारा | |||
३८१ | विकर्ता | निरनिराळी ब्रह्मांडे निर्माण करणारा | |||
३८२ | गहनः | समजण्यास अतिशय गहन (क्लिष्ट) असणारा | |||
३८३ | गुहः | योगमायेचा पडदा टाकणारा/ह्रदयस्थ, ह्रदयात राहणारा | |||
३८४ | व्यवसायः | ज्ञानमात्र स्वरूप | |||
३८५ | व्यवस्थानः | संपूर्ण विश्वाची व्यवस्था राखणारा | |||
३८६ | संस्थानः | प्रलयकाळी सर्वांना सामावून घेणारा | |||
३८७ | स्थानदः | प्रत्येकाला योग्य असे स्थान देणारा | |||
३८८ | ध्रुवः | अढळपद असलेला | |||
३८९ | परर्धिः | श्रेष्ठ असे प्रकटस्वरूप असलेला | |||
३९० | परमस्पष्टः | श्रेष्ठ वैभव आणि द्न्यान असलेला | |||
३९१ | तुष्टः | भक्तांच्या कोणत्याही सेवेने सहज प्रसन्न होणारा | |||
३९२ | पुष्टः | जो एकदम परिपूर्ण/तृप्त आहे असा तो | |||
३९३ | शुभेक्षणः | शुभस्वरूप असलेला/केवळ दर्शनाने पुनीत करणारा | |||
३९४ | रामः | ज्याच्यास्वरूपात सर्वजण रममाण होतात असा तो | |||
३९५ | विरामः | ज्याच्या स्वरूपात सर्वजण विरून जाऊ इच्छितात असा तो | |||
३९६ | विरजः | विषयसेवनाची आवड नसलेला/सर्व मोह विरहित | |||
३९७ | मार्गः | योग्य ती दिशा आहे असा तो | |||
३९८ | नेयः | योग्य मार्गदर्शन करणारा | |||
३९९ | नयः | सर्वांचे नेतृत्व करणारा | |||
४०० | अनयः | ज्याच्या पुढे कोणीही नाही असा तो | |||
४०१ | वीरः | The valiant | |||
४०२ | शक्तिमतां श्रेष्ठः | The best among the powerful | |||
४०३ | धर्मः | The law of being | |||
४०४ | धर्मविदुत्तमः | The highest among men of realisation | |||
४०५ | वैकुण्ठः | Lord of supreme abode, Vaikuntha | |||
४०६ | पुरुषः | One who dwells in all bodies | |||
४०७ | प्राणः | Life | |||
४०८ | प्राणदः | Giver of life | |||
४०९ | प्रणवः | He who is praised by the gods | |||
४१० | पृथुः | The expanded | |||
४११ | हिरण्यगर्भः | The creator | |||
४१२ | शत्रुघ्नः | The destroyer of enemies | |||
४१३ | व्याप्तः | The pervader | |||
४१४ | वायुः | The air | |||
४१५ | अधोक्षजः | One whose vitality never flows downwards | |||
४१६ | ऋतुः | The seasons | |||
४१७ | सुदर्शनः | He whose meeting is auspicious | |||
४१८ | कालः | He who judges and punishes beings | |||
४१९ | परमेष्ठी | One who is readily available for experience within the heart | |||
४२० | परिग्रहः | The receiver | |||
४२१ | उग्रः | The terrible | |||
४२२ | संवत्सरः | The year | |||
४२३ | दक्षः | The smart | |||
४२४ | विश्रामः | The resting place | |||
४२५ | विश्वदक्षिणः | The most skilful and efficient | |||
४२६ | विस्तारः | The extension | |||
४२७ | स्थावरस्स्थाणुः | The firm and motionless | |||
४२८ | प्रमाणम् | The proof | |||
४२९ | बीजमव्ययम् | The Immutable Seed | |||
४३० | अर्थः | He who is worshiped by all | |||
४३१ | अनर्थः | One to whom there is nothing yet to be fulfilled | |||
४३२ | महाकोशः | He who has got around him great sheaths | |||
४३३ | महाभोगः | He who is of the nature of enjoyment | |||
४३४ | महाधनः | He who is supremely rich | |||
४३५ | अनिर्विण्णः | He who has no discontent | |||
४३६ | स्थविष्ठः | One who is supremely huge | |||
४३७ | अभूः | One who has no birth | |||
४३८ | धर्मयूपः | The post to which all dharma is tied | |||
४३९ | महामखः | The great sacrificer | |||
४४० | नक्षत्रनेमिः | The nave of the stars | |||
४४१ | नक्षत्री | The Lord of the stars (the moon) | |||
४४२ | क्षमः | He who is supremely efficient in all undertakings | |||
४४३ | क्षामः | He who ever remains without any scarcity | |||
४४४ | समीहनः | One whose desires are auspicious | |||
४४५ | यज्ञः | One who is of the nature of yajna | |||
४४६ | इज्यः | He who is fit to be invoked through yajna | |||
४४७ | महेज्यः | One who is to be most worshiped | |||
४४८ | क्रतुः | The animal-sacrifice | |||
४४९ | सत्रम् | Protector of the good | |||
४५० | सतांगतीः | Refuge of the good | |||
४५१ | सर्वदर्शी | All-knower | |||
४५२ | विमुक्तात्मा | The ever-liberated self | |||
४५३ | सर्वज्ञः | Omniscient | |||
४५४ | ज्ञानमुत्तमम् | The Supreme Knowledge | |||
४५५ | सुव्रतः | He who ever-performing the pure vow | |||
४५६ | सुमुखः | One who has a charming face | |||
४५७ | सूक्ष्मः | The subtlest | |||
४५८ | सुघोषः | Of auspicious sound | |||
४५९ | सुखदः | Giver of happiness | |||
४६० | सुहृत् | Friend of all creatures | |||
४६१ | मनोहरः | The stealer of the mind | |||
४६२ | जितक्रोधः | One who has conquered anger | |||
४६३ | वीरबाहुः | Having mighty arms | |||
४६४ | विदारणः | One who splits asunder | |||
४६५ | स्वापनः | One who puts people to sleep | |||
४६६ | स्ववशः | He who has everything under His control | |||
४६७ | व्यापी | All-pervading | |||
४६८ | नैकात्मा | Many souled | |||
४६९ | नैककर्मकृत् | One who does many actions | |||
४७० | वत्सरः | The abode | |||
४७१ | वत्सलः | The supremely affectionate | |||
४७२ | वत्सी | The father | |||
४७३ | रत्नगर्भः | The jewel-wombed | |||
४७४ | धनेश्वरः | The Lord of wealth | |||
४७५ | धर्मगुब् | One who protects dharma | |||
४७६ | धर्मकृत् | One who acts according to dharma | |||
४७७ | धर्मी | The supporter of dharma | |||
४७८ | सत् | existence | |||
४७८ | असत् | illusion | |||
४८० | क्षरम् | He who appears to perish | |||
४८१ | अक्षरम् | Imperishable | |||
४८२ | अविज्ञाता | The non-knower (The knower being the conditioned soul within the body) | |||
४८३ | सहस्रांशुः | The thousand-rayed | |||
४८४ | विधाता | All supporter | |||
४८५ | कृतलक्षणः | One who is famous for His qualities | |||
४८६ | गभस्तिनेमिः | The hub of the universal wheel | |||
४८७ | सत्त्वस्थः | Situated in sattva | |||
४८८ | सिंहः | The lion | |||
४८९ | भूतमहेश्वरः | The great lord of beings | |||
४९० | आदिदेवः | The first deity | |||
४९१ | महादेवः | The great deity | |||
४९२ | देवेशः | The Lord of all devas | |||
४९३ | देवभृद्गुरूः | Advisor of Indra | |||
४९४ | उत्तरः | He who lifts us from the ocean of samsara | |||
४९५ | गोपतिः | The shepherd | |||
४९६ | गोप्ता | The protector | |||
४९७ | ज्ञानगम्यः | One who is experienced through pure knowledge | |||
४९८ | पुरातनः | He who was even before time | |||
४९९ | शरीरभूतभृत् | One who nourishes the nature from which the bodies came | |||
५०० | भोक्ता | The enjoyer | |||
५०१ | कपीन्द्रः | Lord of the monkeys (Rama) | |||
५०२ | भूरिदक्षिणः | He who gives away large gifts | |||
५०३ | सोमपः | One who takes Soma in the yajnas | |||
५०४ | अमृतपः | One who drinks the nectar | |||
५०५ | सोमः | One who as the moon nourishes plants | |||
५०६ | पुरुजित् | One who has conquered numerous enemies | |||
५०७ | पुरुसत्तमः | The greatest of the great | |||
५०८ | विनयः | He who humiliates those who are unrighteous | |||
५०९ | जयः | The victorious | |||
५१० | सत्यसन्धः | Of truthful resolution | |||
५११ | दाशार्हः | One who was born in the Dasarha race | |||
५१२ | सात्त्वतां पतिः | The Lord of the Satvatas | |||
५१३ | जीवः | One who functions as the ksetrajna | |||
५१४ | विनयितासाक्षी | The witness of modesty | |||
५१५ | मुकुन्दः | The giver of liberation | |||
५१६ | अमितविक्रमः | Of immeasurable prowess | |||
५१७ | अम्भोनिधिः | The substratum of the four types of beings | |||
५१८ | अनन्तात्मा | The infinite self | |||
५१९ | महोदधिशयः | One who rests on the great ocean | |||
५२० | अन्तकः | The death | |||
५२१ | अजः | Unborn | |||
५२२ | महार्हः | One who deserves the highest worship | |||
५२३ | स्वाभाव्यः | Ever rooted in the nature of His own self | |||
५२४ | जितामित्रः | One who has conquered all enemies | |||
५२५ | प्रमोदनः | Ever-blissful | |||
५२६ | आनन्दः | A mass of pure bliss | |||
५२७ | नन्दनः | One who makes others blissful | |||
५२८ | नन्दः | Free from all worldly pleasures | |||
५२९ | सत्यधर्मा | One who has in Himself all true dharmas | |||
५३० | त्रिविक्रमः | One who took three steps | |||
५३१ | महर्षिः कपिलाचार्यः | He who incarnated as Kapila, the great sage | |||
५३२ | कृतज्ञः | The knower of the creation | |||
५३३ | मेदिनीपतिः | The Lord of the earth | |||
५३४ | त्रिपदः | One who has taken three steps | |||
५३५ | त्रिदशाध्यक्षः | The Lord of the three states of consciousness | |||
५३६ | महाशृंगः | Great-horned (Matsya) | |||
५३७ | कृतान्तकृत् | Destroyer of the creation | |||
५३८ | महावराहः | The great boar | |||
५३९ | गोविन्दः | One who is known through Vedanta | |||
५४० | सुषेणः | He who has a charming army | |||
५४१ | कनकांगदी | Wearer of bright-as-gold armlets | |||
५४२ | गुह्यः | The mysterious | |||
५४३ | गभीरः | The unfathomable | |||
५४४ | गहनः | Impenetrable | |||
५४५ | गुप्तः | The well-concealed | |||
५४६ | चक्रगदाधरः | Bearer of the disc and mace | |||
५४७ | वेधाः | Creator of the universe | |||
५४८ | स्वांगः | One with well-proportioned limbs | |||
५४९ | अजितः | Vanquished by none | |||
५५० | कृष्णः | Dark-complexioned | |||
५५१ | दृढः | The firm | |||
५५२ | संकर्षणोऽच्युतः | He who absorbs the whole creation into His nature and never falls away from that nature | |||
५५३ | वरुणः | One who sets on the horizon (Sun) | |||
५५४ | वारुणः | The son of Varuna (Vasistha or Agastya) | |||
५५५ | वृक्षः | The tree | |||
५५६ | पुष्कराक्षः | Lotus eyed | |||
५५७ | महामनः | Great-minded | |||
५५८ | भगवान् | One who possesses six opulences | |||
५५९ | भगहा | One who destroys the six opulences during pralaya | |||
५६० | आनन्दी | One who gives delight | |||
५६१ | वनमाली | One who wears a garland of forest flowers | |||
५६२ | हलायुधः | One who has a plough as His weapon | |||
५६३ | आदित्यः | Son of Aditi | |||
५६४ | ज्योतिरादित्यः | The resplendence of the sun | |||
५६५ | सहिष्णुः | One who calmly endures duality | |||
५६६ | गतिसत्तमः | The ultimate refuge for all devotees | |||
५६७ | सुधन्वा | One who has Shaarnga | |||
५६८ | खण्डपरशु: | One who holds an axe | |||
५६९ | दारुणः | Merciless towards the unrighteous | |||
५७० | द्रविणप्रदः | One who lavishly gives wealth | |||
५७१ | दिवःस्पृक् | Sky-reaching | |||
५७२ | सर्वदृग्व्यासः | One who creates many men of wisdom | |||
५७३ | वाचस्पतिरयोनिजः | One who is the master of all vidyas and who is unborn through a womb | |||
५७४ | त्रिसामा | One who is glorified by Devas, Vratas and Saamans | |||
५७५ | सामगः | The singer of the sama songs | |||
५७६ | साम | The Sama Veda | |||
५७७ | निर्वाणम् | All-bliss | |||
५७८ | भेषजम् | Medicine | |||
५७९ | भृषक् | Physician | |||
५८० | संन्यासकृत् | Institutor of sannyasa | |||
५८१ | समः | Calm | |||
५८२ | शान्तः | Peaceful within | |||
५८३ | निष्ठा | Abode of all beings | |||
५८४ | शान्तिः | One whose very nature is peace | |||
५८५ | परायणम् | The way to liberation | |||
५८६ | शुभांगः | One who has the most beautiful form | |||
५८७ | शान्तिदः | Giver of peace | |||
५८८ | स्रष्टा | Creator of all beings | |||
५८९ | कुमुदः | He who delights in the earth | |||
५९० | कुवलेशयः | He who reclines in the waters | |||
५९१ | गोहितः | One who does welfare for cows | |||
५९२ | गोपतिः | Husband of the earth | |||
५९३ | गोप्ता | Protector of the universe | |||
५९४ | वृषभाक्षः | One whose eyes rain fulfilment of desires | |||
५९५ | वृषप्रियः | One who delights in dharma | |||
६९६ | अनिवर्ती | One who never retreats | |||
५९७ | निवृतात्मा | One who is fully restrained from all sense indulgences | |||
५९८ | संक्षेप्ता | The involver | |||
५९९ | क्षेमकृत् | Doer of good | |||
६०० | शिवः | Auspiciousness | |||
६०१ | श्रीवत्सवत्साः | One who has sreevatsa on His chest | |||
६०२ | श्रीवासः | Abode of Sree | |||
६०३ | श्रीपतिः | Lord of Laksmi | |||
६०४ | श्रीमतां वरः | The best among glorious | |||
६०५ | श्रीदः | Giver of opulence | |||
६०६ | श्रीशः | The Lord of Sree | |||
६०७ | श्रीनिवासः | One who dwells in the good people | |||
६०८ | श्रीनिधिः | The treasure of Sree | |||
६०९ | श्रीविभावनः | Distributor of Sree | |||
६१० | श्रीधरः | Holder of Sree | |||
६११ | श्रीकरः | One who gives Sree | |||
६१२ | श्रेयः | Liberation | |||
६१३ | श्रीमान् | Possessor of Sree | |||
६१४ | लोकत्रयाश्रयः | Shelter of the three worlds | |||
६१५ | स्वक्षः | Beautiful-eyed | |||
६१६ | स्वङ्गः | Beautiful-limbed | |||
६१७ | शतानन्दः | Of infinite varieties and joys | |||
६१८ | नन्दिः | Infinite bliss | |||
६१९ | ज्योतिर्गणेश्वरः | Lord of the luminaries in the cosmos | |||
६२० | विजितात्मा | One who has conquered the sense organs | |||
६२१ | विधेयात्मा | One who is ever available for the devotees to command in love | |||
६२२ | सत्कीर्तिः | One of pure fame | |||
६२३ | छिन्नसंशयः | One whose doubts are ever at rest | |||
६२४ | उदीर्णः | The great transcendent | |||
६२५ | सर्वतश्चक्षुः | One who has eyes everywhere | |||
६२६ | अनीशः | One who has none to Lord over Him | |||
६२७ | शाश्वतः-स्थिरः | One who is eternal and stable | |||
६२८ | भूशयः | One who rested on the ocean shore (Rama) | |||
६२९ | भूषणः | One who adorns the world | |||
६३० | भूतिः | One who is pure existence | |||
६३१ | विशोकः | Sorrowless | |||
६३२ | शोकनाशनः | Destroyer of sorrows | |||
६३३ | अर्चिष्मान् | The effulgent | |||
६३४ | अर्चितः | One who is constantly worshipped by His devotees | |||
६३५ | कुम्भः | The pot within whom everything is contained | |||
६३६ | विशुद्धात्मा | One who has the purest soul | |||
६३७ | विशोधनः | The great purifier | |||
६३८ | अनिरुद्धः | He who is invincible by any enemy | |||
६३९ | अप्रतिरथः | One who has no enemies to threaten Him | |||
६४० | प्रद्युम्नः | Very rich | |||
६४१ | अमितविक्रमः | Of immeasurable prowess | |||
६४२ | कालनेमीनिहा | Slayer of Kalanemi | |||
६४३ | वीरः | The heroic victor | |||
६४४ | शौरी | One who always has invincible prowess | |||
६४५ | शूरजनेश्वरः | Lord of the valiant | |||
६४६ | त्रिलोकात्मा | The self of the three worlds | |||
६४७ | त्रिलोकेशः | The Lord of the three worlds | |||
६४८ | केशवः | One whose rays illumine the cosmos | |||
६४९ | केशिहा | Killer of Kesi | |||
६५० | हरिः | The creator | |||
६५१ | कामदेवः | The beloved Lord | |||
६५२ | कामपालः | The fulfiller of desires | |||
६५३ | कामी | One who has fulfilled all His desires | |||
६५४ | कान्तः | Of enchanting form | |||
६५५ | कृतागमः | The author of the agama scriptures | |||
६५६ | अनिर्देश्यवपुः | Of Indescribable form | |||
६५७ | विष्णूः | All-pervading | |||
६५८ | वीरः | The courageous | |||
६५९ | अनन्तः | Endless | |||
६६० | धनञ्जयः | One who gained wealth through conquest | |||
६६१ | ब्रह्मण्यः | Protector of Brahman (anything related to Narayana) | |||
६६२ | ब्रह्मकृत् | One who acts in Brahman | |||
६६३ | ब्रह्मा | Creator | |||
६६४ | ब्रहम | Biggest | |||
६६५ | ब्रह्मविवर्धनः | One who increases the Brahman | |||
६६६ | ब्रह्मविद् | One who knows Brahman | |||
६६७ | ब्राह्मणः | One who has realised Brahman | |||
६६८ | ब्रह्मी | One who is with Brahma | |||
६६९ | ब्रह्मज्ञः | One who knows the nature of Brahman | |||
६७० | ब्राह्मणप्रियः | Dear to the brahmanas | |||
६७१ | महाकर्मः | Of great step | |||
६७२ | महाकर्मा | One who performs great deeds | |||
६७३ | महातेजा | One of great resplendence | |||
६७४ | महोरगः | The great serpent | |||
६७५ | महाक्रतुः | The great sacrifice | |||
६७६ | महायज्वा | One who performed great yajnas | |||
६७७ | महायज्ञः | The great yajna | |||
६७८ | महाहविः | The great offering | |||
६७९ | स्तव्यः | One who is the object of all praise | |||
६८० | स्तवप्रियः | One who is invoked through prayer | |||
६८१ | स्तोत्रम् | The hymn | |||
६८२ | स्तुतिः | The act of praise | |||
६८३ | स्तोता | One who adores or praises | |||
६८४ | रणप्रियः | Lover of battles | |||
६८५ | पूर्णः | The complete | |||
६८६ | पूरयिता | The fulfiller | |||
६८७ | पुण्यः | The truly holy | |||
६८८ | पुण्यकीर्तिः | Of Holy fame | |||
६८९ | अनामयः | One who has no diseases | |||
६९० | मनोजवः | Swift as the mind | |||
६९१ | तीर्थकरः | The teacher of the tirthas | |||
६९२ | वसुरेताः | He whose essence is golden | |||
६९३ | वसुप्रदः | The free-giver of wealth | |||
६९४ | वसुप्रदः | The giver of salvation, the greatest wealth | |||
६९५ | वासुदेवः | The son of Vasudeva | |||
६९६ | वसुः | The refuge for all | |||
६९७ | वसुमना | One who is attentive to everything | |||
६९८ | हविः | The oblation | |||
६९९ | सद्गतिः | The goal of good people | |||
७०० | सत्कृतिः | One who is full of Good actions | |||
७०१ | सत्ता | One without a second | |||
७०२ | सद्भूतिः | One who has rich glories | |||
७०३ | सत्परायणः | The Supreme goal for the good | |||
७०४ | शूरसेनः | One who has heroic and valiant armies | |||
७०५ | यदुश्रेष्ठः | The best among the Yadava clan | |||
७०६ | सन्निवासः | The abode of the good | |||
७०७ | सुयामुनः | One who attended by the people dwelling on the banks of Yamuna | |||
७०८ | भूतावासः | The dwelling place of the elements | |||
७०९ | वासुदेवः | One who envelops the world with Maya | |||
७१० | सर्वासुनिलयः | The abode of all life energies | |||
७११ | अनलः | One of unlimited wealth, power and glory | |||
७१२ | दर्पहा | The destroyer of pride in evil-minded people | |||
७१३ | दर्पदः | One who creates pride, or an urge to be the best, among the righteous | |||
७१४ | दृप्तः | One who is drunk with Infinite bliss | |||
७१५ | दुर्धरः | The object of contemplation | |||
७१६ | अथापराजितः | The unvanquished | |||
७१७ | विश्वमूर्तिः | Of the form of the entire Universe | |||
७१८ | महामूर्तिः | The great form | |||
७१९ | दीप्तमूर्तिः | Of resplendent form | |||
७२० | अमूर्तिमान् | Having no form | |||
७२१ | अनेकमूर्तिः | Multi-formed | |||
७२२ | अव्यक्तः | Unmanifeset | |||
७२३ | शतमूर्तिः | Of many forms | |||
७२४ | शताननः | Many-faced | |||
७२५ | एकः | The one | |||
७२६ | नैकः | The many | |||
७२७ | सवः | The nature of the sacrifice | |||
७२८ | कः | One who is of the nature of bliss | |||
७२९ | किम् | What (the one to be inquired into) | |||
७३० | यत् | Which | |||
७३१ | तत् | That | |||
७३२ | पदमनुत्तमम् | The unequalled state of perfection | |||
७३३ | लोकबन्धुः | Friend of the world | |||
७३४ | लोकनाथः | Lord of the world | |||
७३५ | माधवः | Born in the family of Madhu | |||
७३६ | भक्तवत्सलः | One who loves His devotees | |||
७३७ | सुवर्णवर्णः | Golden-coloured | |||
७३८ | हेमांगः | One who has limbs of gold | |||
७३९ | वरांगः | With beautiful limbs | |||
७४० | चन्दनांगदी | One who has attractive armlets | |||
७४१ | वीरहा | Destroyer of valiant heroes | |||
७४२ | विषमः | Unequalled | |||
७४३ | शून्यः | The void | |||
७४४ | घृताशी | One who has no need for good wishes | |||
७४५ | अचलः | Non-moving | |||
७४६ | चलः | Moving | |||
७४७ | अमानी | Without false vanity | |||
७४८ | मानदः | One who causes, by His maya, false identification with the body | |||
७४८ | मान्यः | One who is to be honoured | |||
७५० | लोकस्वामी | Lord of the universe | |||
७५१ | त्रिलोकधृक् | One who is the support of all the three worlds | |||
७५२ | सुमेधा | One who has pure intelligence | |||
७५३ | मेधजः | Born out of sacrifices | |||
७५४ | धन्यः | Fortunate | |||
७५५ | सत्यमेधः | One whose intelligence never fails | |||
७५६ | धराधरः | The sole support of the earth | |||
७५७ | तेजोवृषः | One who showers radiance | |||
७५८ | द्युतिधरः | One who bears an effulgent form | |||
७५९ | सर्वशस्त्रभृतां वरः | The best among those who wield weapons | |||
७६० | प्रग्रहः | Receiver of worship | |||
७६१ | निग्रहः | The killer | |||
७६२ | व्यग्रः | One who is ever engaged in fulfilling the devotee's desires | |||
७६३ | नैकशृंगः | One who has many horns | |||
७६४ | गदाग्रजः | One who is invoked through mantra | |||
७६५ | चतुर्मूर्तिः | Four-formed | |||
७६६ | चतुर्बाहुः | Four-handed | |||
७६७ | चतुर्व्यूहः | One who expresses Himself as the dynamic centre in the four vyoohas | |||
७६८ | चतुर्गतिः | The ultimate goal of all four varnas and asramas | |||
७६९ | चतुरात्मा | Clear-minded | |||
७७० | चतुर्भावः | The source of the four | |||
७७१ | चतुर्वेदविद् | Knower of all four vedas | |||
७७२ | एकपात् | One-footed (BG 10.42) | |||
७७३ | समावर्तः | The efficient turner | |||
७७४ | निवृत्तात्मा | One whose mind is turned away from sense indulgence | |||
७७५ | दुर्जयः | The invincible | |||
७७६ | दुरतिक्रमः | One who is difficult to be disobeyed | |||
७७७ | दुर्लभः | One who can be obtained with great efforts | |||
७७८ | दुर्गमः | One who is realised with great effort | |||
७७९ | दुर्गः | Not easy to storm into | |||
७८० | दुरावासः | Not easy to lodge | |||
७८१ | दुरारिहा | Slayer of the asuras | |||
७८२ | शुभांगः | One with enchanting limbs | |||
७८३ | लोकसारंगः | One who understands the universe | |||
७८४ | सुतन्तुः | Beautifully expanded | |||
७८५ | तन्तुवर्धनः | One who sustains the continuity of the drive for the family | |||
७८६ | इन्द्रकर्मा | One who always performs gloriously auspicious actions | |||
७८७ | महाकर्मा | One who accomplishes great acts | |||
७८८ | कृतकर्मा | One who has fulfilled his acts | |||
७८९ | कृतागमः | Author of the Vedas | |||
७९० | उद्भवः | The ultimate source | |||
७९१ | सुन्दरः | Of unrivalled beauty | |||
७९२ | सुन्दः | Of great mercy | |||
७९३ | रत्ननाभः | Of beautiful navel | |||
७९४ | सुलोचनः | One who has the most enchanting eyes | |||
७९५ | अर्कः | One who is in the form of the sun | |||
७९६ | वाजसनः | The giver of food | |||
७९७ | शृंगी | The horned one | |||
७९८ | जयन्तः | The conqueror of all enemies | |||
७९९ | सर्वविज्जयी | One who is at once omniscient and victorious | |||
८०० | सुवर्णबिन्दुः | With limbs radiant like gold | |||
८०१ | अक्षोभ्यः | One who is ever unruffled | |||
८०२ | सर्ववागीश्वरेश्वरः | Lord of the Lord of speech | |||
८०३ | महाहृदः | One who is like a great refreshing swimming pool | |||
८०४ | महागर्तः | The great chasm | |||
८०५ | महाभूतः | The great being | |||
८०६ | महानिधिः | The great abode | |||
८०७ | कुमुदः | One who gladdens the earth | |||
८०८ | कुन्दरः | The one who lifted the earth | |||
८०९ | कुन्दः | One who is as attractive as Kunda flowers | |||
८१० | पर्जन्यः | He who is similar to rain-bearing clouds | |||
८११ | पावनः | One who ever purifies | |||
८१२ | अनिलः | One who never slips | |||
८१३ | अमृतांशः | One whose desires are never fruitless | |||
८१४ | अमृतवपुः | He whose form is immortal | |||
८१५ | सर्वज्ञः | Omniscient | |||
८१६ | सर्वतोमुखः | One who has His face turned everywhere | |||
८१७ | सुलभः | One who is readily available | |||
८१८ | सुव्रतः | One who has taken the most auspicious forms | |||
८१९ | सिद्धः | One who is perfection | |||
८२० | शत्रुजित् | One who is ever victorious over His hosts of enemies | |||
८२१ | शत्रुतापनः | The scorcher of enemies | |||
८२२ | न्यग्रोधः | The one who veils Himself with Maya | |||
८२३ | उदुम्बरः | Nourishment of all living creatures | |||
८२४ | Tree of life | ||||
८२५ | चाणूरान्ध्रनिषूदनः | The slayer of Canura | |||
८२६ | सहस्रार्चिः | He who has thousands of rays | |||
८२७ | सप्तजिह्वः | He who expresses himself as the seven tongues of fire (Types of agni) | |||
८२८ | सप्तैधाः | The seven effulgences in the flames | |||
८२९ | सप्तवाहनः | One who has a vehicle of seven horses (sun) | |||
८३० | अमूर्तिः | Formless | |||
८३१ | अनघः | Sinless | |||
८३२ | अचिन्त्यः | Inconceivable | |||
८३३ | भयकृत् | Giver of fear | |||
८३४ | भयनाशनः | Destroyer of fear | |||
८३५ | अणुः | The subtlest | |||
८३६ | बृहत् | The greatest | |||
८३७ | कृशः | Delicate, lean | |||
८३८ | स्थूलः | One who is the fattest | |||
८३९ | गुणभृत् | One who supports | |||
८४० | निर्गुणः | Without any properties | |||
८४१ | महान् | The mighty | |||
८४२ | अधृतः | Without support | |||
८४३ | स्वधृतः | Self-supported | |||
८४४ | स्वास्यः | One who has an effulgent face | |||
८४५ | प्राग्वंशः | One who has the most ancient ancestry | |||
८४६ | वंशवर्धनः | He who multiplies His family of descendants | |||
८४७ | भारभृत् | One who carries the load of the universe | |||
८४८ | कथितः | One who is glorified in all scriptures | |||
८४९ | योगी | One who can be realised through yoga | |||
८५० | योगीशः | The king of yogis | |||
८५१ | सर्वकामदः | One who fulfils all desires of true devotees | |||
८५२ | आश्रमः | Haven | |||
८५३ | श्रमणः | One who persecutes the worldly people | |||
८५४ | क्षामः | One who destroys everything | |||
८५५ | सुपर्णः | The golden leaf (Vedas) BG 15.1 | |||
८५६ | वायुवाहनः | The mover of the winds | |||
८५७ | धनुर्धरः | The wielder of the bow | |||
८५७ | धनुर्वेदः | One who declared the science of archery | |||
८५९ | दण्डः | One who punishes the wicked | |||
८६० | दमयिता | The controller | |||
८६१ | दमः | Beautitude in the self | |||
८६२ | अपराजितः | One who cannot be defeated | |||
८६३ | सर्वसहः | One who carries the entire Universe | |||
८६४ | अनियन्ता | One who has no controller | |||
८६५ | नियमः | One who is not under anyone's laws | |||
८६६ | अयमः | One who knows no death | |||
८६७ | सत्त्ववान् | One who is full of exploits and courage | |||
८६८ | सात्त्विकः | One who is full of sattvic qualities | |||
८६९ | सत्यः | Truth | |||
८७० | सत्यधर्मपराक्रमः | One who is the very abode of truth and dharma | |||
८७१ | अभिप्रायः | One who is faced by all seekers marching to the infinite | |||
८७२ | प्रियार्हः | One who deserves all our love | |||
८७३ | अर्हः | One who deserves to be worshiped | |||
८७४ | प्रियकृत् | One who is ever-obliging in fulfilling our wishes | |||
८७५ | प्रीतिवर्धनः | One who increases joy in the devotee's heart | |||
८७६ | विहायसगतिः | One who travels in space | |||
८७७ | ज्योतिः | Self-effulgent | |||
८७८ | सुरूचिः | Whose desire manifests as the universe | |||
८७९ | हुतभुक् | One who enjoys all that is offered in yajna | |||
८८० | विभुः | All-pervading | |||
८८१ | रविः | One who dries up everything | |||
८८२ | विरोचनः | One who shines in different forms | |||
८८३ | सूर्यः | The one source from where everything is born | |||
८८४ | सविता | The one who brings forth the Universe from Himself | |||
८८५ | रविलोचनः | One whose eye is the sun | |||
८८६ | अनन्तः | Endless | |||
८८७ | हुतभुक् | One who accepts oblations | |||
८८८ | भोक्ता | One who enjoys | |||
८८९ | सुखदः | Giver of bliss to those who are liberated | |||
८९० | नैकजः | One who is born many times | |||
८९१ | अग्रजः | The first amongst eternal [ Pradhana Purusha ]. Agra means first and ajah means never born. Both individual souls and Vishnu are eternal but Ishvara is Pradhana Taatva. Hence the word agra. | |||
८९२ | अनिर्विण्णः | One who feels no disappointment | |||
८९३ | सदामर्षी | One who forgives the trespasses of His devotees | |||
८९४ | लोकाधिष्ठानम् | The substratum of the universe | |||
८९५ | अद्भुतः | Wonderful | |||
८९६ | सनात् | The beginningless and endless factor | |||
८९७ | सनातनतमः | The most ancient | |||
८९८ | कपिलः | The great sage Kapila | |||
८९९ | कपिः | One who drinks water | |||
९०० | अव्ययः | The one in whom the universe merges | |||
९०१ | स्वस्तिदः | Giver of Svasti | |||
९०२ | स्वस्तिकृत् | One who robs all auspiciousness | |||
९०३ | स्वस्ति | One who is the source of all auspiciouness | |||
९०४ | स्वस्तिभुक् | One who constantly enjoys auspiciousness | |||
९०५ | स्वस्तिदक्षिणः | Distributor of auspiciousness | |||
९०६ | अरौद्रः | One who has no negative emotions or urges | |||
९०७ | कुण्डली | One who wears shark earrings | |||
९०८ | चक्री | Holder of the chakra | |||
९०९ | विक्रमी | The most daring | |||
९१० | ऊर्जितशासनः | One who commands with His hand | |||
९११ | शब्दातिगः | One who transcends all words | |||
९१२ | शब्दसहः | One who allows Himself to be invoked by Vedic declarations | |||
९१३ | शिशिरः | The cold season, winter | |||
९१४ | शर्वरीकरः | Creator of darkness | |||
९१५ | अक्रूरः | Never cruel | |||
९१६ | पेशलः | One who is supremely soft | |||
९१७ | दक्षः | Prompt | |||
९१८ | दक्षिणः | The most liberal | |||
९१९ | क्षमिणांवरः | One who has the greatest amount of patience with sinners | |||
९२० | विद्वत्तमः | One who has the greatest wisdom | |||
९२१ | वीतभयः | One with no fear | |||
९२२ | पुण्यश्रवणकीर्तनः | The hearing of whose glory causes holiness to grow | |||
९२३ | उत्तारणः | One who lifts us out of the ocean of change | |||
९२४ | दुष्कृतिहा | Destroyer of bad actions | |||
९२५ | पुण्यः | Supremely pure | |||
९२६ | दुःस्वप्ननाशनः | One who destroys all bad dreams | |||
९२७ | वीरहा | One who ends the passage from womb to womb | |||
९२८ | रक्षणः | Protector of the universe | |||
९२९ | सन्तः | One who is expressed through saintly men | |||
९३० | जीवनः | The life spark in all creatures | |||
९३१ | पर्यवस्थितः | One who dwells everywhere | |||
९३२ | अनन्तरूपः | One of infinite forms | |||
९३३ | अनन्तश्रीः | Full of infinite glories | |||
९३४ | जितमन्युः | One who has no anger | |||
९३५ | भयापहः | One who destroys all fears | |||
९३६ | चतुरश्रः | One who deals squarely | |||
९३७ | गभीरात्मा | Too deep to be fathomed | |||
९३८ | विदिशः | One who is unique in His giving | |||
९३९ | व्यादिशः | One who is unique in His commanding power | |||
९४० | दिशः | One who advises and gives knowledge | |||
९४१ | अनादिः | One who is the first cause | |||
९४२ | भूर्भूवः | The substratum of the earth | |||
९४३ | लक्ष्मीः | The glory of the universe | |||
९४४ | सुवीरः | One who moves through various ways | |||
९४५ | रुचिरांगदः | One who wears resplendent shoulder caps | |||
९४६ | जननः | He who delivers all living creatures | |||
९४७ | जनजन्मादिः | The cause of the birth of all creatures | |||
९४८ | भीमः | Terrible form | |||
९४९ | भीमपराक्रमः | One whose prowess is fearful to His enemies | |||
९५० | आधारनिलयः | The fundamental sustainer | |||
९५१ | अधाता | Above whom there is no other to command | |||
९५२ | पुष्पहासः | He who shines like an opening flower | |||
९५३ | प्रजागरः | Ever-awakened | |||
९५४ | ऊर्ध्वगः | One who is on top of everything | |||
९५५ | सत्पथाचारः | One who walks the path of truth | |||
९५६ | प्राणदः | Giver of life | |||
९५७ | प्रणवः | Omkara | |||
९५८ | पणः | The supreme universal manager | |||
९५९ | प्रमाणम् | He whose form is the Vedas | |||
९६० | प्राणनिलयः | He in whom all prana is established | |||
९६१ | प्राणभृत् | He who rules over all pranas | |||
९६२ | प्राणजीवनः | He who maintains the life-breath in all living creatures | |||
९६३ | तत्त्वम् | The reality | |||
९६४ | तत्त्वविद् | One who has realised the reality | |||
९६५ | एकात्मा | The one self | |||
९६६ | जन्ममृत्युजरातिगः | One who knows no birth, death or old age in Himself | |||
९६७ | भूर्भुवःस्वस्तरुः | The tree of the three worlds (bhoo=terrestrial, svah=celestial and bhuvah=the world in between) | |||
९६८ | तारः | One who helps all to cross over | |||
९६९ | सविताः | The father of all | |||
९७० | प्रपितामहः | The father of the father of beings (Brahma) | |||
९७१ | यज्ञः | One whose very nature is yajna | |||
९७२ | यज्ञपतिः | The Lord of all yajnas | |||
९७३ | यज्वा | The one who performs yajna | |||
९७४ | यज्ञांगः | One whose limbs are the things employed in yajna | |||
९७५ | यज्ञवाहनः | One who fulfils yajnas in complete | |||
९७६ | यज्ञभृद् | The ruler of the yajanas | |||
९७७ | यज्ञकृत् | One who performs yajna | |||
९७८ | यज्ञी | Enjoyer of yajnas | |||
९७९ | यज्ञभुक् | Receiver of all that is offered | |||
९८० | यज्ञसाधनः | One who fulfils all yajnas | |||
९८१ | यज्ञान्तकृत् | One who performs the concluding act of the yajna | |||
९८२ | यज्ञगुह्यम् | The person to be realised by yajna | |||
९८३ | अन्नम् | One who is food | |||
९८४ | अन्नादः | One who eats the food | |||
९८५ | आत्मयोनिः | The uncaused cause | |||
९८६ | स्वयंजातः | Self-born | |||
९८७ | वैखानः | The one who cut through the earth | |||
९८८ | सामगायनः | One who sings the sama songs; one who loves hearing saama chants; | |||
९८९ | देवकीनन्दनः | Son of Devaki | |||
९९१ | स्रष्टा | Creator | |||
९९१ | क्षितीशः | The Lord of the earth | |||
९९२ | पापनाशनः | Destroyer of sin | |||
९९३ | शंखभृत् | One who has the divine Pancajanya | |||
९९४ | नन्दकी | One who holds the Nandaka sword | |||
९९५ | चक्री | Carrier of Sudarsana | |||
९९६ | शार्ङ्गधन्वा | One who aims His shaarnga bow | |||
९९७ | गदाधरः | Carrier of Kaumodaki club | |||
९९८ | रथांगपाणिः | One who has the wheel of a chariot as His weapon; One with the strings of the chariot in his hands; | |||
९९९ | अक्षोभ्यः | One who cannot be annoyed by anyone | |||
१००० | सर्वप्रहरणायुधः | He who has all implements for all kinds of assault and fight |
हे सुद्धा पहा
संपादनसंदर्भ
संपादन- ^ Aggarwal, Ashwini Kumar (2020-07-31). Vishnu Sahasranama Recitation (इंग्रजी भाषेत). Devotees of Sri Sri Ravi Shankar Ashram.
- ^ Śarmā, Prema Sumana (1999). हिन्दी वैष्णव भक्तिकाव्य में प्रगतिशील तत्त्व (हिंदी भाषेत). Śiprā Pablikeśansa. ISBN 978-81-7541-036-7.
- ^ जोशी, होडारकर, महादेवशास्त्री, पद्मजा (2010). भारतीय संस्कृती कोश खंड आठवा. पुणे: भार्तेये संस्कृतीकोश मंडळ, प्रकाशन. pp. ७८८.
- ^ Saraswati, Swami Satyananda; Saraswati, Swami Vittalananda (2002). Vishnu Sahasranama & Satyanarayana Vrat (इंग्रजी भाषेत). Devi Mandir Publications. ISBN 978-1-877795-51-0.
- ^ Shri Vishnu Aur Unke Avtar (हिंदी भाषेत). Vani Prakashan. ISBN 978-81-7055-823-1.
- ^ "विष्णु सहस्रनाम के पाठ से क्या लाभ होने की है मान्यता, जानिए विधि". Jansatta (हिंदी भाषेत). 2019-01-16. 2020-10-26 रोजी पाहिले.
भगवान विष्णूची एक हजार नावे १०७ श्लोकांच्या स्वरूपात लिहिली गेली आहेत आणि स्तोत्रांच्या रूपात त्यांची रचना केली गेली आहे.