"शिव तांडव स्तोत्र" च्या विविध आवृत्यांमधील फरक

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खूणपताका: मोबाईल संपादन मोबाईल वेब संपादन प्रगत मोबाईल संपादन
छो शुद्धलेखन (अधिक माहिती)
ओळ ७५:
जटा-कटा-हसं-भ्रमभ्रमन्नि-लिम्प-निर्झरी- -विलोलवी-चिवल्लरी-विराजमान-मूर्धनि . धगद्धगद्धग-ज्ज्वल-ल्ललाट-पट्ट-पावके किशोरचन्द्रशेखरे रतिः प्रतिक्षणं मम ॥२॥
 
ज्या शंकरांच्या जटांत अतिवेगाने विलासपूर्वक भ्रमण करणाऱ्या या देवी गंगेच्या धारा ज्यांच्या मस्तकावरुनमस्तकावरून प्रवाहित होत आहेत, ज्यांच्या मस्तकावर अग्नीच्या प्रचंड ज्वाळा धगधगत आहेत, त्या लघु चंद्राने विभूषित शिवासाठी माझा अनुराग प्रतिक्षण वाढत राहो.
 
धरा-धरेन्द्र-नंदिनीविलास-बन्धु-बन्धुर स्फुर-द्दिगन्त-सन्ततिप्रमोद-मान-मानसे . कृपा-कटाक्ष-धोरणी-निरुद्ध-दुर्धरापदि क्वचि-द्दिगम्बरे-मनो विनोदमेतु वस्तुनि ॥३॥