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ओळ ४४४:
नर्सिकर्जी सादर प्रणाम,
 
आप हमेशा ही मेरेलिए आदरणीय रहे है| मैंने आज जो पढ़ा उससे मै बहुत व्यथित हु| आपका नाम इन्लोगेके साथ जोड़ाजाना और घिनोने आरोप लगाना बेहद दुखद है|

इश्वर उन्हें माफ़ करे|
 
सबको सम्मति दे भगवन. . . लकी ०४:३७, ८ नोव्हेंबर २०११ (UTC)