"नैतिक पाठराखण" च्या विविध आवृत्यांमधील फरक
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ओळ ६:
==नैतिकता रक्षण==
==संस्कृती रक्षक==
विशीष्ट वाद, विचारप्रणाली किंवा धर्माधारानी समाजाचे भलेच होणार आहे अशी धारणा असते अथवा करून दिली जाते.संस्कृतीरक्षणाच्याच नावाखाली बर्याचदा देशांचा, संस्थांचा, प्रसारमाध्यमाचा आणि शिक्षणपद्धतींचा ताबा घेतला जातो.या मागे शुद्ध हेतु असु शकतो अथवा बर्याचदा या मागे स्वार्थ असण्याची अथवा हुकुमशाही मनोवृत्ती यामागे दडली असल्याची शक्यताही नाकारता येत नाही.<ref>[http://www.manogat.com/node/5677 मनोगत संकेतस्थळ यावर जो जे वांछील तो ते लिहो प्रेषक एकलव्य (रवि., १४/०५/२००६ - १७:४६)] जुन २८ २०१० रोजी ९.४५ रात्रौ जसे दिसले
==व्यक्तिस्वातंत्र्यावर येणार्या निर्बंधाचे स्वरूप==
{{अनुवाद|hi}}
ठेकेदार हर धर्म, जात और सम्प्रदाय में मिल जाते हैं। पाकिस्तान की स्वात घाटी में तालिबान एक रेडियो स्टेशन चलाता है। उसके माध्यम से वह संदेश प्रसारित करता है कि लडकियों को स्कूल नहीं भेजना है। उन्हें ऎसे कपडे पहनने हैं जिसमें उनका पोर-पोर ढका हो। अब स्वात घाटी की क्या बात करें पिछले दिनों तक तो धरती का स्वर्ग कहे जाने वाले अपने कश्मीर में ही लडकियों के जींस पहनने पर पाबंदी थी। वहां से थोडा नीचे उतरें तो पांच नदियों के प्रदेश में एक फरमान जारी किया गया कि लडकियां सलवार कमीज के अलावा कुछ नहीं पहनेंगी। लडकी का जींस टोप पहनना नैतिकतावादियों की आंख में खटकता है। अब जरा देश के दक्षिण में चलें। अपने संगठन के आगे ईश्वर का नाम जोडकर नैतिक बनने वालों ने एक शहर में लडकियों को जम कर पीटा। उनके बाल पकड- पकड कर घसीटा। मजे की बात यह कि यह तमाशा नैतिकता के नाम पर किया गया। कसम भोलेनाथ की। हमें तो अब नैतिकतावादियों से डर लगने लगा है। लगता है कि किसी भी वाद की ऎसी-तैसी उसे मानने वाले "वादियों" ने उस वाद के आलोचकों से ज्यादा की है। चाहे गांधीवाद हो या साम्यवाद। पूंजीवाद का बेडा गर्क उस महान देश में ही हो रहा है जो अपने आपको स्वतंत्रता का सबसे बडा अलम्बरदार मानता रहा है।<ref>
== हेही पाहा ==
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