"राग काफी" च्या विविध आवृत्यांमधील फरक

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ओळ २७:
== संदर्भ ==
१. राग-बोध (प्रथम भाग). बा. र. देवधर.
 
==उदाहरण==
 
<code>घर आंगण न सुहावै, पिया बिन मोहि न भावै॥
 
दीपक जोय कहा करूं सजनी, पिय परदेस रहावै।
 
सूनी सेज जहर ज्यूं लागे, सिसक-सिसक जिय जावै॥
 
नैण निंदरा नहीं आवै॥
 
कदकी उभी मैं मग जोऊं, निस-दिन बिरह सतावै।
 
कहा कहूं कछु कहत न आवै, हिवड़ो अति उकलावै॥
 
हरि कब दरस दिखावै॥
 
ऐसो है कोई परम सनेही, तुरत सनेसो लावै।
 
वा बिरियां कद होसी मुझको, हरि हंस कंठ लगावै॥
 
मीरा मिलि होरी गावै॥</code>
 
{{विस्तार}}
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