"विकिपीडिया:मोबाईल साहाय्य" च्या विविध आवृत्यांमधील फरक

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छो खान्देश मे राजपूत
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ओळ ३:
 
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==या साहाय्य पाना विषयी==
ओळ ४७:
# गुगल Handwriting tool प्ले-स्टोअर वर उपलब्ध आहेत. सहज बोटाने गिरवून टंकन करता येते. ग्रामीण भागात बरेच युवा हे वापरताना आढळले.
# 'गुगल इंडिक कीबोर्ड' वापरायला सुलभ आहे. यात स्वतःचा शब्दकोश तयार करता येतो.
# स्विफ्ट कीबोर्ड मध्ये बरेच वारंवार वापरत असणारे शब्द अपोआप पर्याय म्हणून दिले जातात.वेग वाढतो.
 
== हे सुद्धा पाहा ==
ओळ ५५:
* [[विकिपीडिया चर्चा:मोबाईल साहाय्य]] ** हा विभाग इतर सर्वसाधारण चर्चांसाठी नव्हे तर, मुख्यत्वे मोबाईल फोन मधून विकिपीडिया आणि बंधू प्रकल्प वाचताना येणाऱ्या अडचणींसाठी आहे.
 
==मोबाईल ॲपमधून चुकीचा आढावा भरणाऱ्या संपादनांची उदाहरणे आणि अभ्यास==
इ•स•१३०३का समय :भारतवर्ष का मुकुटमनी दुग्रराज चित्तोड विदेशी आक्रांता अलाउद्दीन खिलजी के आक्रमण से झुंज रहा था।गढ़ के निचे खिलजी ने जुल्म के कहर ढहाये थे। परीणामत: युद्ध अटल था। महारानी पद्मिनी ने१३०००स्त्रियो के साथ जौहर ज्वाला मे अपने आपको समर्पित कर दिया।जौहर ज्वाला मे जलती पतियों की कसम खाकर मेवाड के विरोने केसरिया धारन कर दुर्ग के किवाड खोल दिये ओर खिलजी के सेना पर भूखे शेरो कि तरह टुट पढे।भीषण युद्ध हुवा।आत्मगौरव कि रक्षा के लिए क्षत्रियों ने लहू की होली खेली।दुखते देखते अपने आन बान एंव शान
* [https://mr.wikipedia.org/w/index.php?title=%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%AE%E0%A4%95%E0%A5%83%E0%A4%B7%E0%A5%8D%E0%A4%A3_%E0%A4%AE%E0%A5%8B%E0%A4%B0%E0%A5%87&diff=prev&oldid=1311852]
कि रक्षा के लिए मेवाड के वीर बलिवेदि पर चढ़ गये।गढ के बाहर कस्बे में या जागीरों मे जो राजपूत बचें थे वे अपने धर्म तथा अभयसिंहजी को बचाने के लिए अन्यत्र सुरक्षित स्थान पर निकल इये।इन्हीं बचें क्षत्रियों के २४ कुल रावल अभयसिंहजी के नेतृत्व में में माडु कि ओर। चले गये।उन्हीं के सुपुत्र रावल अभयसिंहजी ने दौडाईचा में अमरावती नदी के किनारे सं १३३३ अपनी जहागिर कायम कि वहां उन्होंने अपना एक छोटासा किला 🏰 भी बनवाया जिसे स्थानीक लोग कहकर पुकारते है। उन्हें दो पुत्र थे। झुंजारसिंह ओर बलबहादुर सिंह।इ स १४५५ मे छोटे पुत्र बलबहादुर सिंह नें मालपुर मे दरबारगड नामक एक किला 🏰 बनाया ओर वहां अपना स्वतंत्रराज स्थापित किया। दौडाइचा सरकार की हुकूमत ५२ गाँव में थीं। मालपुर के रावल सरकार कि हुकूमत भम्भागिरी [भामेर] तक थीं। मालपुर मे जा बसें सिसोदिया परिवार 👪 के लोगोंने १३ गांव बसाए जिनमें वैन्दाना; सुराया , रामी ,पथारे ,वणी , धावडे , खर्दे आदि गांव प्रमुख थे••••••••इन्हीं गांव में से कई परिवार 👪 ओसर्ली , कोपरलि , टाकरखेडा , वाटोडा , अहिल्यापुर , पलासनेर , होलनांथा , भवाले , विरवाडा आदि गांवों में बस गये।वहाँ उन्होंने खेती ओर जमींदारी कि वृद्धि की।
सुरत विजय के बाद लौट रहे छत्रपति शिवाजी महाराज की फौज का स्वागत किया दरबारगड नरेश रावल रामसिंहजी ने किया था। औंरगजेब के मृत्यु के बाद दक्षिण में लौटते युवराज शाहु महाराज ओर रानी 👑 येसुबाई जी को दक्षिण में सुरक्षित पहुचाने कि जिम्मेदारी मालपुर दरबारगड का रावल सरकार ने उठाई थी। जिन्हें छत्रपति शाहु जी ने कोल्हापुर दरबार मे बुलाकर सन्मानीत कि था ओर सनद बहाल कि थी। शहा आलम के वक्त भी लामकनी के रावल मोहनसिंह मुगलों से लोहा लिया था ओर खान्देश से मुगल तुकड़ीयो को भगाया था
इसी काल मे दुर्जन सिंह रावल [जो महाल करी थे उन्हे महाला कहा जाता था] ने बुराई नदी के किनारे धावा बोला।वहां के शासक को परास्त कर वहां अपना शासन शुरू किया । वहां नदी के किनारे विजयगढ नामक गढी बनाई ओर पाटन नाम का गांव बसाया। जहां माँ आशापुरी का प्रसिद्ध मंदिर है। ईनकि ५५ गांव में जहागिर थी ओर वंशविस्तार हुवा। जिनमें शिंन्दखेडा , आलने , खलाने , चिमठाने , दरने , रोहाने , तावखेड़ा; अमराला ; देगाव; लामकानी; कढरे; रामी; बलसाने ; वल ; घुसरे; शेवाले ; धूरखेड़ा आदि मुख है।
 
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१३३२ मे चावंडिया राजपूत अमरसंह ने सातपुड़ा के घने जंगल मे थत प्राचिन थल तोरणमाल पर कजा किया। महाभारत के समय यहा के राजा युवना ने पांडवो क ओर से यु मे हिंसा लिया था और विजनवास के समय पांडवो ने यहा कुछ समय बिताया भी था। इसी वंश के रावल फतेहसिंह ने मांजरा नाम के नामक थापना क और १३ गाव मे बती बसाई। उसी काल मे सोलंखी सरदार [जो इशी नाम से जाने जाते थे] रावल सुजानसिंह ने अपनी सेना करा सुवणिगर पर हमला किया और वहा अपना शासन आरंभ किया। उही के वंशज केसरीसंह के बेटे मोहनसंह ने तोरखेड़ा गढ़ी क थापना क और लगभग २२५ गाव मे अपना वचव स्थापित किया। उहोने ही कढावल गाव बसाकर वहा एक किलेनुमा कोट बनवाया। इनके परवार के लोग तरहाड; भटाने; रंजाने; धमाने; विरदेल; बिलाडि;जसाने; कमखेड़ा ; आछी; कोटली ;हिसपुर; तावखेड़ा; डगरगाव आदि गाव मे जा बसे। इसी वंश के धवलसंह के पु मदनसिंह ने थानिय शासक सोना कोली को परात कर कोडिड के जंगल मे अपनी गढ़ी बनाई। कोडिड; वणावल; उपरिपंड; दावली; गिधाडे; आरावे; वाडी आदि गाव मे अपना वतन बनाया। इसी परवार के विजयसिंह नांदरखेड़ा मे गये। जनके वंशज कनकसंह ने लांबोला गाव मे अपनी जागीर क थापना क। १३३२ के मय मे तंवर परवार के रावल सामंतसिंह ने नंदुरबार पर हमला किया और वहा के गवली शासक को परात कर अपना शासन कायम किया। उही के वंशज जयसंह ने भगरा गाव बसाकर सारंगखेडा [तापी के किनारे ] मे अपनी जागीर क थापना क। जनका सारंगखेडा;असलोद्; गोगापुर तक विस्तार रहा।
 
[[वर्ग:विकिपीडिया सहाय्य]]
करौली के जादौन परिवार भी मेवाड़ के सेवा मे थे। वे भी अपने साथय के साथ दिण क ओर निकले। सूरतसंह जादौन के वंशज विजयसिंह ने वतमान महारा और मय देश क सीमा पर थत सातपुड़ा क तलहटी मे पलासनेर नाम के गाव क थापना क।वहा उहोने अपनी गढ़ी बनाई। पलाश वृ का घना जंगल होने क वजह से उसका नाम पलासनेर हवा। वहा से एक परवार बभलाज़ मे जा बसा और वहा अपनी जागीर स्थापित कि। उही के वंशजो ने १६५२ मे सूयकाया तापी नदी के किनारे थालनेर गाव मे जागीर प्राप्त कि। थालनेर फाक राय क राजधानी रही थी। वहा उहे जामदार का किताब दिया गया। वहा से कुछ् परवारोने १७०२ मे आमोदा गाव क थापना किया। वहा उहे मराठा शासन काल मे देशमुख पदवी प्राप्त हुई। यहा से खानदेश के ३२ गाव मे जादौन परवार जा बसे जनमे तंवर क वडली; विकवेल; जैतपुर; पिंपरी; विरदेल; होलनांथा; हबरडे; मलाने; भोरखेड़ा ;पथारे; रामी; सावलदा आदी मुख गाव है।
 
मालवा से कुछ परमार परिवार भी खानदेश मे आ बसे। वे मांडू--धार होकर तापी के किनारे शदनी नाम के ग्राम कि स्थापना कि जहा किलेनुमा दो बड़ी हवेलया बनवाई। यहा से कुछ परवार भोरख़ेड़ा और भावेर गाव मे जा बसे जनके कुछ वंशज होलनांथा और पथारे गाव मे बस गये। इन मुख घरान के साथ तंवर परवार भी खानदेश क ओर आकृ हये। जहोने वडली नाम का गाव बसाया। होलकर शासन के समय महारानी अहिल्यादेवी अहिल्यापुर नाम का गाव बसाया और वहा का जमा वडली के तंवर परवार को सौपा गया। कुछ तंवर बागलान क ओर जा बसे। मालेगाव के पास कुछ गाव मे तंवर राजपूत बते है। मेवाड़ से खानदेश मे आये निकुभ राजपुतोने शहादा तहसील मे पांच गाव बसाये.....यडाइत परवारो ने जलगाव जले मे नगरदेवला; चिंचखेडा आिद पांच गाव मे बती बसाई। चौहानो ने भी धामनोड ,निवालि के परसर मे अपनी बती बसाई[जो वतमान म मे है]। बागुल बेटावद मे जा बसे। कुंडाने , हारेवर पिंपलगाव मे बघेल जा बसे जो आज वाघ नाम से जाने जाते है। मौय कुल के ४ गाव नांदरखेड़ा के साथ साथ बसाये गये। सुर्यवंशियो ने जावदा ग्राम बसवाया। सनेर वाघाला मे ; रावा मेहरगाव मे ; गांगुला चालीसगाव और तांदूळवाड़ी में ; सिंगा सजदा म बसे। कुछ सिसोदीया परिवार जलगाव जले के यावल म बसे जहाँ उहने छोटी सी गढ़ी भी बनवाई थी! मराठा शासन के उरकाल म पेशवा के एक सरदार ने उनके वतन को छीन लया था !
 
मेवाड़ के सिसोदिया राजवंश से एक राजकुमार ने मध्ययुगीन काल मे वर्तमान बड़वानी राज्य कि स्थापना कि थी। और उस राज्य कि सीमा भी दक्षिण में खानदेश तक थी। इस काल म मुस्लिम आक्रमण की वजह से भी इस देश से कई परिवार विस्थापित होकर निवाड ; खानदेश; विदर्भ आदि क्षेत्रों में चले गए थे।
 
आज के बुरहानपुर के निकट स्थित आसिर गढ पर मेवाड से पधारें चौहानो का वर्चस्व था । खिलजी के आक्रमण के बाद चित्तोड से पधारे हुए शूरवीर टांक पवार राजपूतों ने अपना वर्चस्व स्थापित कर दिया था। जब चित्तोड पर आक्रमण होते थे तब टांक पवार राजपूतों ने अपनी वीरता का अनुपम परिचय दिया था। खिलजी के आक्रमण के बाद टांक पवार मेवाड से निकलकर मालवा,खान्देश,निवाड आदि क्षेत्रों में चलें गये थे। इन्हीं के कुछ वंशजों ने ऐतिहासिक मराठा -अब्दाली पानीपद युद्ध में भी हिस्सा लिया था।
 
खिलजी के आक्रमण के वक्त राजा 👑 करनदेव वाघेला दक्षिण में देवगिरी कि शरण मे आाया।लेकिन राजा 👑 रामदेव राय कि हार के बाद ओर उसे खिलजि द्वारा गुजरात में एक जागिर बहाल किये जाने के बाद करनदेव वाघेला अपने अनुचरों के साथ महाराष्ट्र के बागलन ;खान्देश तथा सातपुडा के तटवर्ती इलाकों में जा बसे थे।अकबर के आक्रमण के वक्त के स्थानीय शासकों को अपनी ओर मिला गया अपनी ओर मिला दिया जाए ओर उसकी सेवाएँ लियी जाये येसा फरमान उनसे निकला था लेकि न खान्देश के स्थानीय निवासियों ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दीया।खान्देश के शासक ज्यादा सुरक्षित इसलिये थे कि उत्तर से दक्षिण के ओर जाने वाले मार्गों पर उनका नियंत्रण था तथा यहां की प्राकृतिक व्यवस्था उनका बचाव करने में पूर्णतः सक्षम थी।
खान्देश प्रांत को साडे बारा रावलों का वतन भी कहा जाता हैं।बारा पुर्ण तथा एक आधे ठिकाने का समावेश इसमें होता था।
खान्देश के साडे बारा ठिकान निम्ननिर्दिष्ट सुचीनुसार है:-
१] दोंडाईचा २] मालपुर ३] शिन्दखेड़ा ४] आष्टे ५]सारंगखेडा ६] रंजाने ७] लांबोला ८] लामकानी ९] चौगाव १०] हाटमोहिदा ११] वनावल १२] मांज़रे १३] करवंद [आधा वतन खानदेश मे था और आधा खानदेश के बाहर]
ज्यादातर बैस ; बडगुजर ; गौड़ ;भारद्वाज ; सोलंखी; खींची राजपूत महाराजा छत्रसाल के समय में दक्षिण तथा मध्य महाराष्ट्र में स्थायी रूप से निवास करने लगे थे। वे मालवा --बुंदेलखंड --विदर्भ होते हुए दक्षिण भारत तक का सफर कर आये थे। वे संघटित रूप में रहते थे। ऐतिहासिक खर्डा युद्ध में उन्होंने मराठा पक्ष का साथ देकर हैदराबाद निजाम के खिलाफ मोर्चा संभालकर बहादुरी दिखाई थी। इनके कई वंशज पुणे ; कोंकण; बीड ; नांदेड ;उस्मानाबाद क्षेत्र में है। वीर बन्दा बहादुर के साथ कुछ राजपूत नांदेड के प्रान्त में आये थे। वे यही बस गए थे। विदर्भ में गाविलगढ़ की किलेदारी भी किसी राजपूत के पास थी। तो कुछ उत्तर भारत के राजपूत मुग़ल आक्रमण के वक़्त दक्षिण की और आकर यही बस गए थे। जो ज्यादातर विदर्भ; मध्य तथा दक्षिण महाराष्ट्र में स्थायी हुए। उन्हें स्थानीय निवासी परदेशी कह पुकारते थे। मांडू के कुछ परमार चावंडिया परिवारों के साथ खानदेश मे आये थे उनमे से एक परिवार ने प्रतापपुर नाम की छोटी जागीर बनाई। राणा उनकी उपाधी रही। वडली के तंवरो ने होल्कर स्टेट का खजाना लूटा था।
कुछ परिवार गुजरात में स्थित सिद्धपुर , धर्मपुर ,वांसदा तथा मालवा स्थित बरवानी स्टेट से स्थानांतरीत होकर महाराष्ट्र कि भूमी में बस गए थे ….।
मेवाड़ के वंश से श्री चन्‍द्रकिरण जी जिन्होने युवा अवस्था मे ही सन्यास ग्रहण कर लिया था ; जलगाव के पास कानलदा नाम के गाव मे आये जहा कण्व ऋषि का प्राचीन आश्रम था। स्वामी श्री चन्द्रकिरणजी तपोवनमजी ने उस आश्रम का जीर्णोद्धार किया और वही सन्यस्त जीवन बिताया था।
 
आजादी के आंदोलन मे खानदेश के राजपूतो ने बढ़-चढकर हिस्सा लिया था। महात्मा गाँधीजी तथा विर सावरकरजी ने मालपुर के दरबारगढ़ को भेट दी थी। टाकरखेड़ा के गुलाबसिंह भिलेसिंह सिसोदिया हिन्दू महासभा के प्रतिनिधि के रूप मे अंग्रेज़ कॅबिनेट मे चुनकर आये थे। जो सावरकर के खास साथी थे। सुराय के पद्मसिंह सिसोदिया हेडगेवारजी तथा गोलवलकर गुरुजी के नजदीकी थे। सन १९३६ में महाराष्ट्र के फैजपूर में कॉंग्रेस का ऐतिहासिक अधिवेशन संपन्न हुवा था जिसमे पंडित जवाहरलाल नेहरूजी , महात्मा गांधीजी सहित देश के गणमान्य अथितियो ने शिरकत कि थी ----बारीश हो रही थी और ध्वजारोहण के मौके पर ध्वज अटक गया था ---कई लोगो ने ध्वज स्तंभ पर चढने का प्रयास भी किया लेकिन उनके सारे प्रयास व्यर्थ साबित हुए ---उस वक्त शिरपूर के एक राजपूत युवक ने जिन्हे बंदा पाटील कहकर पुकारते थे ---ध्वज स्तंभ पर चढाई कर ध्वज कि गांठ को मुक्त कराया ---सारा माहोल अचंभित हो गया था उनके साहस को देखकर ---खुद पंडित जी ने उनका सन्मान किया था ---.राजपूतो ने गाव तथा खेती ,व्यापार का विकास किया। अपने साथ कई जातियों का वे सहारा बने थे। स्वर्गीय सोनुसिंहजी धनसिंहजी भूतपूर्व केन्द्रीय गृहराज्यमंत्री थे। श्रीमती प्रतिभाताई पाटील जी ने तो देश का सर्वोच्च स्थान महामहिम राष्ट्रपति के रूप मे प्राप्त किया था।आज रावल संगठनके अध्यक्ष करवंद के पृथ्वीराजसिंह रावल है। दोंडाइचा के भूतपूर्व संस्थानिक तथा विधायक दिवंगत श्रीमान जयसिंहजी रावल साहब ने आशिया का पहला स्टार्च प्रॉजेक्ट शुरू किया जो हजारो लोगोंको आजभी रोजगार दे रहा है। उन्होने यहा स्कूल; उद्योग शुरू किये और लोगों को रोजगार दिलवाये। आपके पुत्र श्रीमान बापूसाहेब जयदेवसिंहजी भी विधायक रहे तथा पोते कुंवर जयकुमार रावल विद्यमान भाजपा सेना सरकार में कैबिनेट मंत्री है जिन्हें पर्यटन, रोजगार मंत्रालय की जिम्मेदारी सौपी गयी है।करवंद के काशिनाथ रावल जि•प•के उपअध्यक्ष रह चुकें है।करवंद तेजेन्द्रसिह रावल तिन बार सरपंच रह चुके हैं। स्व.इन्द्रसिंहजी सिसोदिया तीन बार विधायक रहे। शिवसेना के आर.ओ तात्या ; जनता दल महेन्द्रसिंहजी; कॉंग्रेस के दिलीपकुमार सानंदा भी विधायक रहे थे। पाचोरा से श्री आर ओ पाटिल शिवसेना के विधायक थे ! अब की बार पाचोरा से उन्ही के भतीजे शिवसेना के श्री किशोरसिंह पाटील भी वर्तमान विधायक है। उत्तमसिंह पंवार सांसद रह चुके है अनेक भाई -बहन सरपंच , नगराध्यक्ष ,जिला परिषद सदस्य , विभिन्न स्थानिक स्वराज्य संस्थाओ मे पदाधिकारी के रूप मे भी मौजूदगी बरकरार है …।
 
फारुकी ;मराठा; होलकर ;पेशवा आदि शासन समय में कुछ जादौन परिवारों को देशमुख; पाटिल; चौधरी; जामदार आदि खिताब प्रदान किये गए थे और उन्हें प्रांतीय तथा ग्रामीण प्रशासन में महत्वपूर्ण अंग माना गया था। जिन्हे शासक द्वारा जमीन प्रदान की जाती थी और अपने क्षेत्र के कुनबियों द्वारा खेती करते थे ।
 
राज बदलते थे --तख़्त पलटते थे लेकिन इनके अधिकार को किसीने नहीं छिना। दिल्ली की ओर से या गुजरात की ओर से जब दक्षिण की और बड़े आक्रमण होते थे तब खान्देश कि जनता को काफी कष्ट झेलने पड़ते थे। ऐसे कठिन समय में वे अपने परिवार तथा प्रजा के साथ सुरक्षित जंगलो में चले जाते थे। कई राजपूत अपने भाईयों से बिछड़ गए वे सुदूर महाराष्ट्र के दक्षिण कि ओर चले गए। अपने गाँव ;स्वभाव ;मूलपुरुष के नामों पर उनके परिवार पहचाने लगे।
 
यहाँ के राजपूत अब मराठा राजपूतो के नाम से जाने जाते है ।
 
 
मध्य युग के इस संक्रमण काल में इस शूरवीर प्रजाति ने काफी संकटों का सामना किया। उन्हें कई बार अपनी बस्तिया उजाड़कर नयी बस्तियों का निर्माण करना पड़ा था.…। कई बार स्थलांतरित होना पड़ा था। घने पहाड़ों का सहारा लेकर इन्होने अपने धर्म तथा वंश को सुरक्षित रखा। इनके साथ अन्य जाती और जनजाति के लोग भी आये थे। उनकी सुरक्षा का जिम्मा भी इन परिवारों उठाया था। अंग्रेज के वक़्त बार उपेक्षा भी झेलनी पड़ी थी। अकाल के समय में अंग्रेज हुकूमत द्वारा लगान जब जबरन वसूल की जाती थी तब दोनों पक्ष में संघर्ष अटल होता रहा था। कई बार बार अंग्रेज सरकार का खजाना लूट लिया जाता था या उनकी टुकड़ियों पर हमले भी किये जाते थे। तब राजपूत को तथा तत्सम जनजातियों के लोगों को अंग्रेज सरकार काफी तकलीफ भी देती थी। बागियों को प्रताडा जाता था। कई बार स्थानीय शासकों की वजह से ; अकाल; भुखमरी; पानी की किल्लत; सुरक्षा आदि कारणों से उन्हें विस्थापित भी होना पड़ा था। समाज के चुनिंदा लोगों के पास धन तथा बल था लेकिन बहुत बड़ा वर्ग काफी कष्टमय जीवन बिताता था।