"परवीन शाकिर" च्या विविध आवृत्यांमधील फरक

Content deleted Content added
(चर्चा | योगदान)
No edit summary
(चर्चा | योगदान)
ओळ २५:
जिस संग भी फेरे डालती<br />
संजोग में थे घनश्याम
 
किंवा, <br />
मेरे चेहरे पे ग़ज़्‍ाल लिखती रहीं <br />
शेर कहती हुई आँखें उसकी<br />
खामोशी कलाम कर रही है<br />
जज्बात की मुहर है सुखन पर<br />
(मौनातच संवाद करतेय. संभाषणावर भावनेची मोहर उमटली आहे.)
 
 
 
{{संदर्भनोंदी}}