"परवीन शाकिर" च्या विविध आवृत्यांमधील फरक
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ओळ २५:
जिस संग भी फेरे डालती<br />
संजोग में थे घनश्याम
किंवा, <br />
मेरे चेहरे पे ग़ज़्ाल लिखती रहीं <br />
शेर कहती हुई आँखें उसकी<br />
खामोशी कलाम कर रही है<br />
जज्बात की मुहर है सुखन पर<br />
(मौनातच संवाद करतेय. संभाषणावर भावनेची मोहर उमटली आहे.)
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