"परवीन शाकिर" च्या विविध आवृत्यांमधील फरक

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(चर्चा | योगदान)
ओळ ३२:
जज्बात की मुहर है सुखन पर<br />
(मौनातच संवाद करतेय. संभाषणावर भावनेची मोहर उमटली आहे.)
 
==परवीनची गंगा नदीवरची एक कविता==
जुगबीते<br />
दजला से एक भटकी हुई लहर<br />
जब तेरे पवित्र चरणों की छूने आई तो<br />
तेरी ममता ने अपनी बाहें फैला दी..<br />
....<br />
गंगा प्यारी !
 
==कृष्णकाव्य==